आजसू पार्टी ने हेमंत सोरेन से पांच साल का हिसाब मांगने का लिया संकल्प

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मुखर संवाद के लिये शिल्पी यादव
रांची: झारखंड आंदोलन की कोख से जन्मा तथा झारखंड के सपूतों की शहादत एवं बलिदान से सिंचित आजसू पार्टी शहीदों के सपने तथा झारखंड के युवाओं, किसानों, मजदूरों, वंचितों, अल्पसंख्यकों एवं महिलाओं की आकांक्षाओं, अधिकारों, एवं उन्नति को पूरा करने के लिए संघर्ष करने वाला सिर्फ एक राजनीतिक संगठन नहीं है बल्कि अपने आप में एक आंदोलन का प्रतीक है। वर्ष 2000 से आजसू पार्टी एक राजनीतिक दल के रूप में झारखंड के लोगों की बुनियादी जरूरतों, सामाजिक सरोकारों, आर्थिक उन्नति, राजनीतिक चेतना एवं सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए तथा उनके हक अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है। झारखंड अपने निर्माण के 24वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। लंबे संघर्ष एवं रक्त रंजित आंदोलनों से गुजर कर हम सबने अलग झारखंड राज्य तो पा लिया लेकिन शहीदों के सपने के अनुसार तथा आंदोलन में शामिल हर वर्ग के उम्मीदों के अनुकूल यह राज्य निखर नहीं पाया। आज 8 सितंबर, 2024 है, झारखंड राज्य आंदोलन के महासमर की यह एक महत्वपूर्ण तिथि है। आज ही के दिन आज से 44 वर्ष पूर्व गुवा में सभी नियमों और मापदंडों का उल्लंघन करते हुए अस्पताल से खींचकर आंदोलनरत झारखंडी आंदोलनकारियों को पुलिस ने गोलियों से भून दिया था।
झारखंड अलग राज्य की मांग को लेकर गुवा में आंदोलनकारियों की आम सभा थी। जिसके अगुवा बहादुर उरांव, भुवनेश्वर महतो, लखन बोदरा, सुखदेव हेम्ब्रम, वैशाख गोप जैसे झारखंड के कितने वीर सपूत थे। गुवा गोली कांड की बर्बरता और निर्ममता के कारण परतंत्र भारत का जलियांवाला कांड भी पीछे छूट गया। आज झारखंड आंदोलन के इस ऐतिहासिक दिन के अवसर पर हम सभी दो मिनट का मौन रखकर झारखंड आंदोलन के और गुवा गोली कांड के शहीद सपूतों को याद करेंगे एवं उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। जब राज्य के लिए आंदोलन चल रहा था जिसमें समाज के सभी जाति, धर्म और वर्ग के लोग अपनी जान की कुर्बानी देने के लिए तत्पर थे तथा सबों ने नए राज्य में अपने लिए कुछ सपने देखे थे। मूलवासी आदिवासी का ये सपना था कि उन्हें बाहरी शोषणकारी ताकतों से मुक्ति मिलेगी, जल जंगल जमीन पर उनका अधिकार होगा। यहां की खदानों में यहां के युवाओं को रोजगार मिलेगा। किसानों को उचित सहयोग एवं सहयता मिलेगी। महिलाओं ने भी ये सपना देखा था कि उन्हें भी राज्य के मुख्य धारा में स्थान मिलेगा, निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी मिलेगी, रोजगार मिलेगा और सामाजिक सम्मान मिलेगा। लेकिन आज हम सभी खुद को कहां पाते हैं। झारखंड आंदोलन के हवन कुंड में अपने पूर्वजों को स्वाहा करने के बाद आज के युवा सड़कों पर हैं। युवा रोजगार मांग रहे हैं इनके पास ठ। की डिग्री है, इनके पास ड। की डिग्री है। इनके पास इंजीनियरिंग की डिग्री है, पॉलिटेक्निक की डिग्री है लेकिन इनके पास नौकरी नहीं है। आज यहां उपस्थित सभी युवा अपने प्रमाण पत्र के साथ अपने हाथों को ऊपर उठाएं ताकि झारखंड की कुम्भकरणी सरकार यह देख सके कि इसने पिछले पांच वर्षों में किस तरह राज्य को रसातल में पहुँचा दिया है। आज राज्य की कुल आबादी अनुमानतः 4 करोड़ है। इसमें काम काजी उम्र वालों की आबादी (15-59) 1 करोड़ 47 लाख 2 हज़ार 184 है। यह ऐसे लोग हैं जो यह तो काम कर रहे हैं या काम की तलाश में हैं। इनमें से 1 करोड़ 42 लाख 5 हज़ार 336 लोग काम कर रहे हैं। और 5 लाख लोग रोजगार की तलाश में घरों से निकलते हैं। इसमें शिक्षित, अशिक्षित, कुशल, अकुशल एवं हर प्रकार के काम काज़ी उम्र के लोग शामिल है जो हर रोज घर से निकलते हैं और बिना एक रुपये कमाए वापस लौट जाते हैं।

सरकार ने यह वादा किया था कि 5 लाख लोगों को हर साल नौकरी देंगे। 5-7 हज़ार बेरोजगारी भत्ता देंगे। सभी बेरोजगार युवाओं का नियोजन केंद्र में पंजीकरण सुनिश्चित कराएंगे। इन्होंने कहा था हर वर्ष श्रच्ैब् परीक्षाएं लेगी। लेकिन क्या ये सब हुआ? युवाओं के पास नौकरियों की भरमार होगी लेकिन विगत पांच वर्षों में क्या हुआ? आंकड़ें बताते हैं कि हर वर्ष 5 लाख नौकरियों का दावा करने वाली इस सरकार के शासन काल में श्रच्ैब् ने 1033 लोगों को तथा झारखंड कर्मचारी चयन आयोग ने 10,041 लोगों ने नौकरियां दी। इन्होंने ये भी कहा था कि निजी क्षेत्र में 75ः आरक्षण एवं 25 करोड़ तक की सरकारी निविदा झारखंडी युवाओं के लिए आरक्षित होगी।
एक राजनेता में इतनी ईमानदारी होनी चाहिए कि वो राज्य की स्थिति का आंकलन कर सके। उसमें इतनी दृष्टि होनी चाहिए कि इस राज्य को कहां ले जाकर लोगों के जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। उनमें इतनी क्षमता होनी चाहिए कि वे उस लक्ष्य तक पहुँचने का सही रास्ता तय कर सके और उनकी इतनी विश्वसनीयता होनी चाहिए कि राज्य की जनता को आश्वस्त कर सके कि वो जो भी निर्णय ले रहे हैं वो राज्य की जनता के हितों में है। राज्य की जनता के जीवन को बेहतर बनाने के लिए है तथा इस राजनीतिक नेतृत्व से राज्य समावेशी विकास के साथ शहीदों के सपनों के अनुकूल इस देश के अग्रणी राज्य के रूप में विकसित हो सके।
दुर्भाग्य से आज जो राजनीतिक व्यवस्था राज्य को चला रही है उसकी प्राथमिकता राज्य निर्माण के आंदोलनकारियों के सपनों के अनुकूल नहीं है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस देश में अगर किसानों की आय सबसे कम है तो वो झारखंड में है। अभी अभी जो आकंड़े आये हैं उसमें झारखंड के एक किसान परिवार की मासिक आय लगभग मात्र 4800 रुपए है। इसको प्रतिदिन प्रति व्यक्ति पर तोड़ेंगे तो झारखंड के किसान परिवार का हर व्यक्ति का जीवन मात्र 33₹ पर है जो अपना जीवन बसर कर रहे हैं। ये कौन सी स्थिति है हेमंत बाबू? आपने युवाओं की फौज को सड़कों पर पुलिस की गोलियां और लाठियां खाने को छोड़ दिया और अपनी कलंकित विरासत को आगे बढ़ाते हुए झारखंड के मूलवासी एवं आदिवासियों की जमीन लूटने के लिए दलालों की एक बड़ी फौज खड़ी की। उन्हें सरकारी संरक्षण दिया। जो जांच एजेंसियां यहां जांच कर रही है उनका कहना है कि मूलवासी और आदिवासी की लगभग 1000 करोड़ रुपये की जमीनें फर्जी दस्तावेज के आधार पर हेमंत बाबू द्वारा संरक्षित जमीन दलालों ने हड़प ली है। जमीन लूट के इस नए तरीक़े को हम जमीनों की डिजिटल डैकती कहते हैं। डिजिटल इसलिए क्योंकि ऑनलाइन खतियान में उपायुक्तों के कार्यालयों के बगल में बैठकर मूलवासी आदिवासी की जमीनों के नियमों में छेड़छाड़ की गई। बड़े पैमाने पर हेराफेरी की गई। ये गिरोह अजीब तरीक़े से काम कर रहा है। गरीब आदिवासी मूलवासी का खतियान उनके पास है लेकिन ऑनलाइन में छेड़छाड़ कर रैयत का नाम बदल दिया जा रहा है। एक नकली रैयत खड़ा किया जा रहा है। फिर उससे पावर ऑफ अटॉर्नी लिया जा रहा है और उस पावर ऑफ अटॉर्नी के बदौलत जमीन दलाल उस जमीन को हड़प रहे हैं। ये नकली दस्तावेजों के बल पर जमीनों पर जाते हैं और जब मूल रैयत इसका विरोध करता है तो हेमन्त बाबू अपनी पुलिस से रैयतों को पिटवाकर जमीन पर जमीन दलालों का कब्जा दिलवाते हैं।

सरकार ने कहा था ₹2000 का चूल्हा भत्ता देंगे लेकिन अब जब चुनाव आ गया तो यह ₹1000 का चुनावी भत्ता दे रहे हैं। अपने वादे अनुसार अभी तक हर महिला को ₹2000 प्रति माह के दर से चूल्हा भत्ता दिए होते तो अभी तक 5 वर्ष में हर महिला को एक लाख बीस हज़ार रुपए मिला होता यह हजार रुपए महिला को भत्ता नहीं दे रहे हैं बल्कि हर महिला का एक लाख बीस हज़ार रुपए हड़प चुके हैं महिलाओं को राशि हेमंत सरकार से मांगनी चाहिए। जिसके लिए सड़कों पर आना चाहिए।
इन्होंने युवाओं से 7000 रुपए बेरोजगारी भत्ता का वादा किया था। अगर यह अपने वादे पर काम किये होते तो आज हर युवक को 4 लाख 20 हज़ार रुपया मिले होते। हेमंत सरकार ने सिर्फ राज्य को ही नहीं लूटा, जमीन को नहीं लूटा, खदान नहीं लूटा, बल्कि इन्होंने हर युवा के 4 लाख 20 हज़ार रुपया लूटा है। अब हेमंत सरकार सरकार नहीं है यह शिकारी बन गई है और लोकतंत्र के मालिक जनता की चुनी सरकार चुनाव से पहले उसके वोट का शिकार करने के लिए सरकारी खजाने का चारा फेंक रही है। आप फसीएगा मत। अगर सरकार की नीयत सही होती तो इस सरकार ने बनने के बाद ही जनता की सारे लाभ दिए होते। ये राज्य चला नहीं रहे हैं इसे चर रहे हैं। यह सरकार जो भी योजनाएं ला रही है। ये कोई कल्याणकारी कार्यक्रम नहीं है। ये एक चुनावी नारा है अगर इन्हें जनता की चिंता होती तो ये सारी योजनाएं सरकार बनते ही लागू हो जाती। सभी योजनाओं को चुनाव के बाद बंद कर दिया जाएगा। यह सरकार किसान विरोधी है। जैसे ही यह सरकार बनी पिछली सरकार की योजना किसान आशीर्वाद योजना जिसमें हर किसान को प्रति एकड़ ₹5000 दिए जाते थे उस बंद कर दिया। 3 साल से राज्य में सुखाड़ था राज्य में पीएम फसल बीमा योजना बंद थी। इस बार बारिश अच्छी हुई है अच्छी फसल की संभावना है और सरकार पीएम फसल बीमा योजना तब शुरु कर रही है। हम जिम्मेदारी से आरोप लगाते हैं यह सब किसान की भलाई के लिए नहीं कमीशन खोरी के लिए हो रही है।
यह सरकार महिला विरोधी भी है। पिछली सरकार ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए, उनके स्वाभिमान को बढ़ाने के लिए, और संपत्ति का मालकिन बनाने के लिए ₹1 में महिला के नाम पर संपत्ति के रजिस्ट्रेशन (निबंधन) की योजना शुरू की थी। इन्होंने उसे भी बंद कर दिया। योजना महिलाओं की महिलाओं को मालकिन बनाने के लिए था हेमंत जी महिलाओं को भिखारी बनाने की योजना चल रहे हैं यही उनकी नीति नीयत और मेरे नीति नीयत में फर्क है।
अगर शहीदों के सपने का झारखंड बनाना है तो इसके लिए तीन चीजें चाहिए –
1. नीति
2. नीयत
3. विश्वसनीयता
मौजूदा सरकार इन तीनों मापदंडों पर विफल है और आइए हम वादाखिलाफी, भ्रष्टाचारी और धोखेबाज सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए आज शपथ लें।

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