आजाद हिन्द सरकार के पहले प्रधानमंत्री पराक्रम पुरुष सुभाष चन्द्र बोस- डॉ.भारद्वाज शुक्ल

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*आजाद हिन्द सरकार के पहले प्रधानमंत्री पराक्रम पुरुष सुभाष चन्द्र बोस*


*लेखकः – डॉ.भारद्वाज शुक्ल*
भारतीय शिक्षण मण्डल, युवा आयाम झारखण्ड के सह प्रमुख
साभार : शिल्पी यादव
रांची : देश की आजादी के अग्रगण्य क्रांतियों में से एक पराक्रम पुरुष नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 125वीं जयंती है। 23 जनवरी 1897 को कटक के प्रसिद्ध वकील जानकी नाथ बोस व प्रभावती देवी के 14 संतानों में से वे नौवीं संतान थे। देश की आजादी के लिए उन्होंने अपने आप को सर्वस्व समर्पण कर दिया था। गांधीजी के अहिंसावादी विचारों से नेताजी सुभाष चंद्र बोस सहमत नहीं थे। सुभाष चंद्र शुरू से ही मेधावी छात्र थे और मैट्रिक परीक्षा में सफल छात्रों की मेरिट सूची में पहले स्थान पर थे। बोस ने अपनी स्नातक की पढ़ाई प्रेसिडेंसी कॉलेज, कोलकाता से की। उच्च अध्ययन के लिए वे सितंबर 1919 में इंग्लैंड गए। उन्हें भारतीय सिविल सेवा के लिए चुना गया था, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए अपने प्रशिक्षण को पूरा किए बिना भारत लौट आए। जलियांवाला बाग नरसंहार ने उन्हें बहुत परेशान किया। महात्मा गांधी के गहरे प्रभाव में, वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। वह देशबंधु चित्तरंजन दास से बहुत प्रभावित थे और उन्हें अपना राजनीतिक गुरु और मार्गदर्शक मानने लगे थे।

सुभाष चंद्र को कई बार गिरफ्तार किया गया था, उदाहरण के लिए, उन्हें दिसंबर 1921 में कोलकाता में गिरफ्तार किया गया था जब वह प्रिंस ऑफ वेल्स की यात्रा के बहिष्कार में शामिल हुए थे। अक्टूबर 1924 में उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और बर्मा (म्यांमार) के मंडलीय जेल में जेल भेज दिया गया। बाद में वे कोलकाता के मेयर बने। सुभाष चंद्र 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे। अगले साल उन्हें फिर से अध्यक्ष बनाया गया। इस मोड़ पर उन्होंने महात्मा गांधी और अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ अपने मतभेदों के कारण 1939 में अपनी पार्टी फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया। सुभाष चंद्र ने सितंबर, 1939 में एक अखिल भारतीय-विरोधी अभियान शुरू किया। उन्हें जुलाई, 1940 में गिरफ्तार किया गया था। बाद में उन्हें घर में नजरबंद कर दिया गया, लेकिन तब वे गायब हो गए और नवंबर1941 में जर्मनी पहुंचे। वे मलाया पहुँचे और भारतीय राष्ट्रीय सेना (प्छ।) या आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया। भारत को आजादी दिलाने के मकसद से 21 अक्टूबर 1943 को “आजाद हिंद सरकार “ की गठन की। नेताजी अपने आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 ईस्वी को वर्मा पहुंचे । वहीं से उन्होंने नारा दिया था “तुम मुझे खून दो मैं तुझे आजादी दूंगा “! उन्होंने कहा था याद रखिए सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत को साथ देना व समझौता करना है । जो अपनी ताकत पर भरोसा करते हैं वह आगे बढ़ते हैं और जो उधार की ताकत वाले हैं वह घायल हो जाते हैं। हमारा सफर कितना भी भयानक , कष्टदाई और बदतर हो लेकिन हमे आगे बढ़ते रहना ही है। सफलता का दिन दूर हो सकता है लेकिन उसका आना अनिवार्य है । उन्होंने युवाओं को देश के लिए अपने प्राण न्योछावर करने की प्रेरणा दी । उनके विचार हमेशा देशवासियों को प्रेरित करते रहेंगे । आजाद हिन्द अंतरिम अस्थायी सरकार में सुभाष चंद्र बोस प्रथम प्रधानमंत्री बने और साथ में युद्ध और विदेश मंत्री का भी कार्यभाल अपने जिम्मे लिया। इसके अलावा इस सरकार में तीन और मंत्री थे। साथ ही एक 16 सदस्यीय मंत्री स्तरीय समिति बनी। अस्थायी सरकार की घोषणा करने के बाद भारत के प्रति निष्ठा की शपथ ली गई।
जब सुभाष निष्ठा की शपथ लेने के लिए खड़े हुए तो कैथे हाल में हर कोई भावुक था। वातावरण निस्तब्ध। फिर सुभाष की आवाज गूंजी, “ईश्वर के नाम पर मैं ये पावन शपथ लेता हूं कि भारत और उसके 38 करोड़ निवासियों को स्वतंत्र कराऊंगा। “
नेताजी की आंखों से बहने लगे आंसू, उसके बाद नेताजी रुक गए। उनकी आवाज भावनाओं के कारण रुकने लगी। आंखों से आंसू बहकर गाल तक पहुंचने लगे। उन्होंने रूमाल निकालकर आंसू पोछे। उस समय हर किसी की आंखों में आंसू आ गए। कुछ देर सुभाष को भावनाओं को काबू करने के लिए रुकना पड़ा। आखिरी सांस तक लड़ता रहूंगा फिर उन्होंने पढ़ना शुरू किया, “मैं सुभाष चंद्र बोस, अपने जीवन की आखिरी सांस तक स्वतंत्रता की पवित्र लड़ाई लडता रहूंगा। मैं हमेशा भारत का सेवक रहूंगा। 38 करोड़ भाई-बहनों के कल्याण को अपना सर्वोत्तम कर्तव्य समझूंगा।”
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अस्थायी सरकार बनाने के साथ आजाद हिंद फौज में नई जान भी फूंकी। इसका मुख्यालय भी उन्होंने सिंगापुर में ही बनाया।
“आजादी के बाद भी मैं हमेशा भारत की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने रक्त की आखिरी बूंद बहाने को तैयार रहूंगा।” नेताजी के भाषण के बाद देर तक “इंकलाब जिंदाबाद”, “आजाद हिंद जिंदाबाद” के आसमान को गूंजा देने वाले नारे गूंजते रहे।
ऐसा था आजाद हिंद सरकार :
सुभाष चंद्र बोस द, राज्याध्यक्ष, प्रधानमंत्री, युद्ध और विदेश मंत्री,
कैप्टेन श्रीमती लक्ष्मी , महिला संगठन,
एसए अय्यर दृ प्रचार और प्रसारण,
लै. कर्नल एसी चटर्जी दृ वित्त,
लै. कर्नल अजीज अहमद,
लै कर्नल एनएस भगत,
लै. कर्नल जेके भोंसले,
लै. कर्नल गुलजार सिंह,
लै. कर्नल एम जैड कियानी,
लै. कर्नल एडी लोगनादन,
लै. कर्नल एहसान कादिर,
लै. कर्नल शाहनवाज (सशस्त्र सेना के प्रतिनिधि), एएम सहायक सचिव, रासबिहारी बोस (उच्चतम परामर्शदाता), करीम गनी, देवनाथ दास, डीएम खान, ए.यलप्पा, जे थीवी, सरकार इशर सिंह (परामर्शदाता), ए एन सरकार (कानूनी सलाहकार)।
बोस की इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, इटली, मांचुको और आयरलैंड इन सात देशों ने तुरंत मान्यता दे दी थी। जापान ने अंडमान और निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिए। नेताजी उन द्वीपों में गए। अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप और निकोबार का नाम स्वराज्य द्वीप रखा गया। 30 दिसंबर 1943 को इन द्वीपों पर आजाद भारत का पहला झंडा भी फहरा दिया गया। 18 अगस्त 1945 ईस्वी को रहस्यमई घटना में उनकी मौत आज भी रहस्य बना हुआ है। सुभाष चंद्र सबसे महान स्वतंत्रता-सेनानियों और देशभक्तों और बंगाल के गौरव में से एक थे। वे अपने जीवन काल में एक महान नेता और आयोजक के रूप में एक किंवदंती बन गए। उनके पास रास बिहारी बोस, शाहनवाज़ खान आदि जैसे कई करीबी सहयोगी थे। चित्तरंजन दास के अलावा, वे बाल गंगाधर तिलक से भी प्रभावित थे।
नेता जी ने कहा था “स्वतंत्रता से मेरा मतलब है सर्वांगीण स्वतंत्रता, अर्थात व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता के साथ-साथ समाज के लिए भी, अमीरों के साथ-साथ गरीबों के लिए भी स्वतंत्रता, पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं के लिए भी स्वतंत्रता,सभी व्यक्तियों और सभी वर्गों के लिए स्वतंत्रता। ”

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