


किसनगंज से मुखर संवाद के लिये अवनरूल हौदा की रिपोर्टः-
किसनगंज: 2019 में हुए लोकसभा चुनाव और विधानसभा के उपचुनाव ने बिहार की राजनीति में एक नये राजनीतिक दल एआइएमआइएम की एंट्री ने महागठबंधन के लिये चिन्ता की लकीरें खींच दी तो वहीं एनडीए के लिये खुशी का सबब बन गयी। 2019 के लोकसभा चुनाव में एआइएमआइएम ने किसनगंज लोकसभा क्षेत्र में दूसरे स्थान पर रही तो वहीं किसनगंज विधानसभा चुनाव में उसके प्रत्याशी ने जीत भी दहर्ज की है। लालू प्रसाद यादव जिस महागठबंधन के प्रमुख रणनीतिकार है उसे धराशायी करने के लिये एनडीए की ओर से बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम तेजधार हथियार बनकर सामने आयेगी। एआइएमआइएम जहां अपने प्रत्याशी खड़ा करेगा वहां महागठबंधन को नुकसान पहुंचायेगा। दरअसल एआइएमआइएम के नेता कई बार खुद ही स्वीकार कर चुके हैं कि वह भाजपा की बी टीम के रूप में ही काम करती हैं जहां मुस्लिम मतदाता चुनाव को हराने और जिताने की भूमिका में होते हैं। असदुद्दीन ओवैसी बिहार में महागठबंधन के घटक दलों की मुश्किलें बढ़ाने वाले हैं। उनकी पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) ने मुस्लिम बहुल 50 क्षेत्रों में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। अपनी 40 सीटों की सूची भी जारी कर दी है। बाकी का इंतजार है। ये सभी ऐसे क्षेत्र हैं, जहां करीब 25 फीसद से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। कई सीटों पर तो 40 से 69 फीसद तक मुस्लिम मतदाता हैं। ओवैसी के रुख से विधानसभा चुनाव में माय समीकरण से आस लगाए महागठबंधन के घटक दल बेचैन हैं, जबकि राजग के घटक दल सुकून महसूस कर सकते हैं। ओवैसी की पार्टी की बिहार में अति सक्रियता से महागठबंधन के परेशान होने की वजहें भी हैं। मजलिस ने जिन सीटों को अपनी सूची में शामिल किया है, उनमें फिलहाल आधे से अधिक पर महागठबंधन के घटक दलों का कब्जा है। पिछले चुनाव के मुताबिक कुल 50 सीटों में से 30 पर अभी राजद, कांग्रेस और माले के विधायक हैं। एक तिहाई सीटों पर तो अकेले राजद का कब्जा है, जबकि 11 सीटें कांग्रेस के खाते में हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस विधायक डॉ. जावेद के सांसद चुन लिए जाने के बाद खाली हुई किशनगंज सीट को उपचुनाव में जीतकर ओवैसी ने अपने इरादे को भी स्पष्ट कर दिया है कि वह चुनावी राजनीति में किसी के साथ मरव्वत करने के पक्ष में नहीं हैं। बिहार में एआइएमआइएम के एक मात्र विधायक कमरुल होदा ने सीमांचल के साथ पूरे बिहार की बदहाली के लिए भाजपा-जदयू के साथ-साथ कांग्रेस-राजद को भी बराबर का जिम्मेवार बताया है। उन्होंने कहा कि बहस 15 साल बनाम 15 साल नहीं, बल्कि आजादी के बाद अबतक के 73 साल को गिना जाना चाहिए। जाहिर है, ओवैसी की पार्टी के निशाने पर वैसे सभी दल हैं, जो अबतक बिहार की सत्ता में रहे हैं। इसके पहले हिदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) ने ओवैसी की पार्टी से गठबंधन की पहल की थी, लेकिन बात कुछ ज्यादा दूर तक नहीं बढ़ी। एआइएमआइएम को विभिन्न दलों के मुस्लिम विधायकों से भी लगाव नहीं है। पार्टी ने जितनी सीटें अभी चिह्नित कर रखी हैं, उनमें से 15 पर अभी मुस्लिम विधायक काबिज हैं। ओवैसी को इससे मतलब नहीं है कि मुस्लिम विधायक हारें या जीतें। सभी सीटों पर पार्टी की ओर से मजबूती के साथ तैयारी की जा रही है। कमरूल होदा के मुताबिक चुनाव में अपनी पार्टी के सिद्धांतों के साथ जाना है। सामने कोई भी हो। इससे ज्यादा फर्क नहीं पडने वाला। दरअसल एआइएमआइएम एक तरह से कहें तो वह भाजपा को ही चुनावी लाभ पहुंचायेंगी क्योंकि वह जितने अधिक मुस्लिमों के वोट हासिल करेगी उतना ही महागठबंधन को परेशानी होगी और एनडीए को फायदा पहुंचेगा। पहले जदयू को भी मुस्लिम मतदाता वोट देते थे लेकिन इस बार ऐसी फिजां दिखाई दे रही है कि अब मुस्लिमों का वोट जदयू को शायद ही मिले।
