कांग्रेस में जिलाध्यक्षों को लेकर हो रहा है कलह, प्रभाव और पैरवी के कारण जातिगत समीकरणों को नजरअंदाज करने का लग रहा है आरोप

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मुखर संवाद के लिये शिल्पी यादव की रिपोर्टः-
रांची: कांग्रेस में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर कलह बढ़ता ही जा रहा है। कांग्रेस के अंदर पैरवी और पहुंच के कारण जातिगत समीकरणों को नजरअंदाज करने का आरोप लग रहा है। कांग्रेंस के अंदर कलह की वजह पैरवी और पहुंच भी बन गयी है। सिमडेगा और रामगढ़ में विधायकों को भी जिलाध्यक्ष बनाकर कलह को मोल ले लिया गया है। वहीं संगठन सृजन होने के बजाय संगठन कलह पर्व जिलाध्यक्षो ंकी नियुक्ति के बाद माहौल बनता हुआ दिख रहा है। झारखंड में संगठन सृजन कार्यक्रम कांग्रेस के लिए सिरदर्द साबित होता जा रहा है। इसके माध्यम से जिला अध्यक्षों को बदलकर पार्टी ने ऐसा जोखिम उठा लिया है जिसकी भरपाई में महीनों लगेंगे। गड़बड़ियों को सुधारने के लिए केंद्रीय स्तर पर फार्मूले की तलाश भी हो रही है। प्रदेश कांग्रेस प्रभारी इसके मद्देनजर कुछ नए सांगठनिक जिलों के निर्माण के पक्ष में हैं। इन जिलों में धनबाद महानगर और जमशेदपुर महानगर को लेकर उन्होंने रविवार की शाम केंद्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल से मुलाकात भी की है। दूसरी ओर, जातिगत समीकरण को साधने के लिए कुछ जिलों में कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की बात भी चल रही है। इस बीच, कोडरमा से शुरू हुआ विरोध धीरे-धीरे प्रदेश के अन्य जिलों में पहुंच रहा है। धनबाद, हजारीबाग, पलामू आदि जिलों में हंगामा शुरू होता दिख रहा है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस माह दीपावली तक विरोध बढ़ता ही रहेगा। नए जिलाध्यक्षों के चयन के बाद से कलह बढ़ता जा रहा है। प्रदेश कांग्रेस ने तमाम गड़बड़ियों की भरपाई करने का फार्मूला तलाशना शुरू कर दिया है।

प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी के.राजू ने इसी क्रम में कई सुझावों के साथ केंद्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल से मुलाकात की है। सूत्रों के अनुसार इस दौरान उन्होंने नए सांगठनिक जिलों के गठन और कुछ जिलों में कार्यकारी अध्यक्षों के चयन को लेकर चर्चा भी की है।जमशेदपुर और धनबाद में महानगर कांग्रेस इकाई के गठन का प्रस्ताव तैयार किया गया है तो कुछ जिलों में जातीय समीकरण को साधने के लिए कार्यकारी अध्यक्षों को मनोनीत करने की बात चल रही है। इन तमाम बातों पर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी के.राजू ने केंद्रीय महासचिव केसी वेणुगापाल से चर्चा कर रणनीति बनाई है। दरअसल, झारखंड में अच्छी खासी आबादी होने के बावजूद कहीं भी कायस्थ को जिलाध्यक्ष नहीं बनाया गया है। यही हाल तेली समुदाय के साथ भी है। पार्टी अब कुछ जिलों में इन दोनों वर्गों से नेताओं को आगे बढ़ाने का काम करेगी। इसके लिए कार्यकारी अध्यक्ष का फार्मूला बनाया जा रहा है।

दूसरी ओर, जिलाध्यक्षों के चयन में पार्टी में रोष है। बाह्मणों के वर्चस्व वाले जिलों गढ़वा, पलामू में ब्राह्मण जिलाध्यक्ष नहीं बनाए गए हैं। इसी प्रकार मुट्ठी भर आबादी होने के बाद भी कोडरमा में धोबी समुदाय से प्रकाश रजक को जिलाध्यक्ष बनाया गया है। ज्ञात हो कि जिले में यादवों का वर्चस्व है। इसी प्रकार देवघर में भी बगावत की आग सुलग रही है। जिलाध्यक्ष को लेकर शुरुआती शर्तों में यह कहा गया था कि कम से कम पांच साल का अनुभव रखनेवाले को ही जिलाध्यक्ष बनाया जाएगा। देवघर में एकदम नए व्यक्ति को जिलाध्यक्ष बनाया गया है। देवघर में कांग्रेस के पुराने नेताओं को यह पच नहीं रहा है।

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