कोरोना के बीच नया बखेड़ा स्थानीय नीति के रूप में खड़ी होगी राज्य की जनता के सामने , हेमंत सरकार 1932 के खतियान को दे सकता है मंजूरी

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मुखर संवाद के लिये अशोक कुमार की रिपोर्टः-
रांची: झारखंड एक बार फिर कोरोना संक्रमण के बीच स्थानीय नीति के रूप में आपसी वैमनस्व को झेलने के लिये तैयार होगा। उसकी धूरी बनेगी हेमंत सरकार की नयी स्थानीय नीति। हांलाकि झामुमो की ओर से अपने घोषणा पत्र में नयी स्थानीय नीति में कटआॅफ डेट 1932 को मानने की बातें कही थी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की मंजूरी मिलने के बाद से ही मुख्यमंत्री सचिवालय ने इस मामले में कार्मिक विभाग को एक कमेटी बनाकर स्थानीयता को लेकर तय वर्तमान नीति पर मंथन करने निर्देश दिया है। सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा के कई विधायक 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता को परिभाषित करने की मांग करते रहे हैं। स्थानीय नीति को लेकर निर्णय लेने के लिए सरकार ने एक कमेटी का गठन करने का निर्देश दिया है। कमेटी कई बिंदुओं पर विचार करेगी जिसमें एक अहम विषय होगा, उस वर्ष का निर्धारण जब से लोग स्थानीय माने जाएंगे। कमेटी के गठन और इसकी अनुशंसा पर एक बार फिर राजनीतिक माहौल गरमाएगा। हालांकि इसमें कोई नई बात भी नहीं और अलग राज्य बनने के बाद से लोगों ने इस नाम पर राजनीति को कई बार करवट बदलते देखा है। राज्य गठन के साथ ही इसे परिभाषित करने की कवायद होती रही हैं लेकिन इस मसले पर पहली बार रघुवर दास की सरकार ने ही स्थानीय नीति को अंतिम रूप दिया। रघुवर सरकार में बनी नियमावली के अनुसार 1985 के बाद से झारखंड में रहने वाले अथवा 20 वर्षों से अधिक समय से झारखंड में रहने का प्रमाण दिखानेवालों को स्थानीय माना जाएगा।हेमंत सोरेन की सरकार में स्थानीय नीति के इस बिंदु समेत अन्य तमाम बिंदुओं पर समीक्षा कर बदलाव के लिए कमेटी बनाई जा रही है। मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव के आदेश के बाद कार्मिक विभाग ने पहले तो मुख्यमंत्री सचिवालय से ही कमेटी बनाने का आग्रह किया लेकिन सीएमओ ने गुरुवार तक कमेटी में नामों की अनुशंसा के साथ रिपोर्ट तलब की है। कल स्थानीय नीति से संबंधित संचिका वापस मुख्यमंत्री के कार्यालय जाएगी। मुखर संवाद के सूत्रों के अनुसार, मुख्य सचिव अथवा अपर मुख्य सचिव स्तर के किसी पदाधिकारी के नेतृत्व में तीन अथवा पांच सदस्यों की कमेटी बनेगी जो इस विषय पर मंथन करेगी। एक-दो दिनों में कमेटी अधिसूचित हो जाएगी। कमेटी बनने के बाद ही स्थानीय नीति को लेकर आगामी दिनों में बनने वाली रणनीति का स्पष्ट खका राज्य के जनता के समक्ष आ पायेगा। हालांकि 2002 में बाबूलाल मरांडी की भाजपा सरकार का पतन इसी स्थानीय नीति के कारण हुआ था इसे देखते हुए हेमंत सरकार कोई बड़ी गलती करने से बचेगी।

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