झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता को मिली राहत, लेकिन झारखंड हाईकोर्ट में रिट याचिका के जरिये होगी सुनवाई

Jharkhand अपराध झारखण्ड देश राजनीति


मुखर संवाद के लिये मुकेश रहतोगी की रिपोर्टः-
रांची / नयी दिल्ली: झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना याचिका को सुनने से इंकार कर दिया है। वहीं अब यह मामला रिट याचिका के रूप में झारखंड हाईकोर्ट में सुना जायेगा। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अनुराग गुप्ता की नियुक्ति को चुनौती देने वाली अवमानना याचिकाओं की सुनवाई से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विताओं को निपटाने के लिए अदालत को मंच नहीं बनाया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि इस तरह की याचिका को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि यदि आपको किसी विशेष नियुक्ति से समस्या है, तो आप केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के पास जाएं। यदि आपको राजनीतिक स्कोर तय करने हैं, तो आप मतदाताओं के बीच जाएं। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और एनवी अंजारिया की पीठ ने अखिल भारतीय आदिम जनजाति विकास समिति झारखंड और भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी की अवमानना याचिकाओं को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया। पीठ ने यह भी कहा कि जनहित याचिकाएं समाज के कमजोर वर्गों की भलाई के लिए होती हैं, व्यक्तिगत या राजनीतिक हितों के लिए नहीं।

वहीं भाजपा प्रदेश प्रवक्ता अजय साह ने कहा कि माननीय सर्वाेच्च न्यायालय ने एक अहम आदेश देते हुए बाबूलाल मरांडी को कहा कि वे अपनी दायर की गई जनहित याचिका को “स्वतंत्रता के साथ वापस लें” और इस मामले में उपलब्ध अन्य वैधानिक उपायों का अनुसरण करें। अजय साह ने कहा है कि अदालत का मानना था कि इस प्रकरण में जनहित याचिका का औचित्य नहीं बनता, बल्कि इसके समाधान के लिए अन्य संवैधानिक उपाय ज्यादा उपयुक्त हैं। इसी क्रम में, सर्वाेच्च न्यायालय ने बाबूलाल मरांडी द्वारा झारखंड उच्च न्यायालय में दायर रिट याचिका को सुनवाई योग्य मानते हुए यह निर्णय लिया कि इस मामले को पीआईएल के रूप में नहीं, बल्कि रिट याचिका के रूप में सुना जाएगा। यह रिट याचिका झारखंड में पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति एवं चयन प्रक्रिया को चुनौती देती है, जिस पर अब सर्वाेच्च न्यायालय सीधे तौर तीन हफ़्ते बाद विचार करेगा।

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि राज्य सरकार ने डीजीपी अनुराग गुप्ता की नियुक्ति करते समय सुप्रीम कोर्ट के 2006 के प्रकाश सिंह मामले और यूपीएससी दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है। उनका कहना था कि नियुक्ति बिना यूपीएससी की अनुशंसित सूची के हुई। डीजीपी गुप्ता 30 अप्रैल को सेवानिवृत्ति की आयु तक पहुंच चुके थे और उनके विस्तार की मांग करना नियमों के खिलाफ है। केंद्र उनके सेवा विस्तार को पहले ही खारिज कर चुका है। याचिकाकर्ताओं ने 2006 के उस ऐतिहासिक फैसले का जिक्र किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि डीजीपी की नियुक्ति के लिए यूपीएससी तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की सूची भेजे और नियुक्त अधिकारी का कार्यकाल कम से कम दो साल का हो। आरोप लगाया गया कि झारखंड सरकार ने इन दिशा-निर्देशों की अनदेखी की और गुप्ता को फरवरी 2025 में डीजीपी बना दिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *