
रांची से अशोक कुमार की रिपोर्टः-
रांची: अब झारखंड में बिहारवासियों को किसी तरह की कोई आरखण की सुविधा नहीं मिलेगी। बिहारियों को झारखंड प्रदेश में किसी प्रकार का कोई आरक्षण नहीं मिलेगा। उच्च न्यायालय के एक बेंच ने इस संबंध में आज अपना फैसला दिया है। यह फैसला बिहार के सभी मूल निवासियों पर लागू होगी। बिहार के रहने वाले रंजीत कुमार ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर झारखंड पुलिस बहाली में आरक्षण का लाभ मांगा था। बीते साल अक्टूबर में इस मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। झारखंड हाई कोर्ट के फैसले के बाद यह साफ हो गया है कि बिहारियों को झारखंड में आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिलेगा। बिहार के स्थाई निवासियों को झारखंड राज्य के नौकरी में किसी भी प्रकार के आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। एक जज इससे असहमत हैैं। दरअसल, हाई कोर्ट के जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस अपरेश कुमार सिंह व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति की ने इस मामले की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सोमवार को अदालत ने अपना फैसला सुनाया। सबसे पहले जस्टिस एचसी मिश्र ने आदेश पढ़कर सुनाया। उन्होंने अपने आदेश में कहा कि प्रार्थी एकीकृत बिहार के समय से ही झारखंड क्षेत्र में रह रहा है, इसलिए उनसे आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। यह कहते हुए उन्होंने राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया और प्रार्थियों को नौकरी में बहाल करने का आदेश दिया। इसके बाद जस्टिस अपरेश कुमार सिंह ने अपना आदेश पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीर सिंह के मामले में दिए गए आदेश का हवाला देते हुए कहा कि एक राज्य का निवासी दूसरे राज्य में आरक्षण का हकदार नहीं होगा। यही आदेश जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति का भी था। इसके बाद दोनों जजों ने प्रार्थियों की अपील को खारिज करते हुए सरकार के पक्ष को सही माना। पूर्व में सुनवाई के दौरान पूर्व महाधिवक्ता अजीत कुमार ने अदालत को बताया था कि एकीकृत बिहार या 15 नवंबर 2000 से राज्य में रहने के बाद भी वैसे लोग आरक्षण के हकदार नहीं होंगे, जिनका ओरिजिन (मूल) झारखंड नहीं होगा। आरक्षण का लाभ सिर्फ उन्हें ही मिलेगा जो झारखंड के ओरिजिन (मूल) होंगे। जहां तक 18 अप्रैल 2016 से लागू स्थानीय नीति का सवाल है। जो लोग इसकी परिधि में आते हैं। उन्हें सिर्फ सामान्य कैटगरी में ही विचार किया जा सकता है। झारखंड सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के बीर सिंह वर्सेज केंद्र सरकार के मामले में दिए गए आदेश का हवाला देते हुए बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में कहा है कि माइग्रेटेड (बाहरी) राज्य से आने वाले लोगों को दूसरे राज्य में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। ऐसे में एकलपीठ का आदेश बिल्कुल सही है। दरअसल एकलपीठ ने पूर्व में वादियों की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि उनके सभी सर्टिफिकेट बिहार के हैं, ऐसे में उन्हें राज्य में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है। इस दौरान अपर महाधिवक्ता मनोज टंडन ने सहयोग किया था। प्रार्थी की ओर से कहा गया था कि एकीकृत बिहार, वर्तमान बिहार और वर्तमान झारखंड में उनकी जाति एससी-एसटी व ओबीसी के रूप में शामिल है, इसलिए वर्तमान झारखंड में उन्हें एससी-एसटी व ओबीसी के रूप में आरक्षण मिलना चाहिए। उनका कहना था कि पिछले कई सालों से वे झारखंड क्षेत्र में रह रहे हैं और सिर्फ इसलिए उन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है कि वो वर्तमान में बिहार राज्य के स्थाई निवासी हैं। उनकी ओर से अदालत को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में जो अधिकार मिला हुआ है। उसके अनुसार उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए।
