
रांची से शिल्पी यादव की रिपोर्टः-
रांची: 2024 के झारखंड विधानसभा चुनाव में 19 नये चेहरे झारखंड विधानसभा पहुंचे है। इन विधायकों में अधिकतर चेहरे युवा हैं। झारखंड में कई सीटों पर प्रभावी रहे झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोरचा से सुप्रीमो जयराम महतो भी विधायक बने। सबसे अधिक नये चेहरे भाजपा से जीते हैं। भाजपा से सात नये चेहरे विधायक बने हैं। झामुमो से पांच और कांग्रेस से तीन नये चेहरे विधायक बने हैं। माले, राजद, आजसू से भी एक-एक नया चेहरा सदन में दिखेंगे।
झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोरचा के सुप्रीमो पहली बार दो सीट से चुनाव लड़ रहे थे। बेरमो और डुमरी से नामांकन किया था। डुमरी सीट वह जीते हैं। जयराम महतो युवाओं में काफी लोकप्रिय हैं।
जमशेदपुर पूर्वी से पूर्व मुख्यमंत्री और ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास की बहू पूर्णिमा साहू को मैदान में उतारा था.।उन्होंने यह सीट कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व आईपीएस अधिकारी अजय कुमार को हरा कर अपने नाम की।
पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले शत्रुघ्न महतो भाजपा के धनबाद सांसद ढुल्लू महतो के भाई हैं। सक्रिय राजनीति में आने से पहले वह अपने भाई के साथ सामाजिक कार्यों से जुड़े थे। योगेंद्र साहु परिवार का इस सीट पर कई वर्षों से कब्जा था। गिरिडीह के सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी के भाई रोशन चौधरी इस सीट से भाजपा के टिकट से जीते हैं। इससे पहले वह आजसू के टिकट से कई बार चुनाव लड़ चुके हैं।
मनीष जायसवाल के हजारीबाग से सांसद चुने जाने के बाद यह सीट खाली हो गयी थी। मनीष जायसवाल दो बार इस सीट से विधायक चुने गये थे। भाजपा ने प्रदीप प्रसाद को उम्मीदवार बनाया था.जमुआ सीट पर भाजपा ने केदार हाजरा का टिकट काटकर मंजू देवी को टिकट दिया था। वह भाजपा के भरोसे पर खरी उतरी है। 45 साल की मंजू कुमारी भाजपा से पहली बार चुनाव लड़ी हैं।
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सिमरिया सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की है। यहां का प्रत्याशी भी पार्टी ने बदला था। इस बार का चुनाव काफी रोमांचक रही. भाजपा को जीत दिला कर उन्होंने दबदबा बढ़ाया है।
पूर्व विधायक संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह भी अब विधायक बन गयी हैं। उन्होंने पूर्णिमा नीरज सिंह को हराया है। रागिनी सिंह की सास कुंती देवी भी यहां से विधायक रही हैं। झारखंड मुक्ति मोरचा ने पहली बार यहां रामसूर्या मुंडा पर दांव खेला था। श्री मुंडा ने भाजपा के दिग्गज नेता नीलकंठ सिंह मुंडा को हराया है। श्री मुंडा यहां वर्ष 2000 से जीतते आ रहे थे। राजमहल सीट से जीतने वाले मो तजाउद्दीन पहले आजसू के टिकट से यहां चुनाव लड़ चुके थे। पिछले दो चुनाव से इस क्षेत्र का नेतृत्व कर रहे अनंत ओझा को उन्होंने हैट्रिक बनाने से रोका है। शिकारीपाड़ा सीट से जीतने वाले आलोक कुमार सोरेन सांसद नलिन सोरेन के बेटे हैं। नलिन सोरेन वर्तमान में दुमका के सांसद हैं. शिकारीपाड़ा झामुमो की पारंपरिक सीट है। झारखंड मुक्ति मोरचा के जमीनी कार्यकर्ता सुदीप गुड़िया पर पार्टी ने भरोसा जताया था। सुदीप गुड़िया की तपकरा, तोरपा वाले इलाके में अच्छी पकड़ है. पार्टी को सांगठनिक रूप से मजबूत करने में इस इलाके में सक्रिय रहे हैं। झामुमो के जमीनी कार्यकर्ता धनंजय सोरेन पर पार्टी ने विश्वास जताया था। धनंजय सोरेन हेमंत सोरेन के भी बहुत करीबी रहे है। भाजपा से बगावत करने वाले लोबिन हेम्ब्रम के खिलाफ पार्टी ने उनको मैदान में उतारा था।
श्वेता सिंह को यहां से कांग्रेस ने टिकट दिया था। श्वेता सिंह दिग्गज राजनीतिज्ञ समरेश सिंह की बहू है. पिछले दो चुनाव से लगातार जीतने वाले बिरंची नारायण को उन्होंने हराया है.
सुरेश बैठा पिछले कई चुनाव से इस क्षेत्र में लड़ रहे हैं। कई वर्षों के बाद कांग्रेस को यह सीट मिली है। काफी नजदीकी मुकाबले में उन्होंने भाजपा के डॉ जीतूचरण राम को हराया है। निशत आलम को कांग्रेस ने इस सीट से प्रत्याशी बनाया था। वह आलमगीर आलम की पत्नी हैं। आलमगीर आलम झामुमो सरकार में मंत्री थे। एक मामले में जेल जाने के बाद कांग्रेस ने उनकी पत्नी को मैदान में उतारा था।
विश्रामपुर से पहली बार जीतने वाले नरेश प्रसाद सिंह को दूसरी बार में सफलता मिली है। 2019 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में इसी सीट से चुनाव लड़े थे। इस बार राजद ने उनको प्रत्याशी बनाया था।
मासस से विधायक आनंद महतो के पुत्र चंद्रदेव महतो पहली बार चुनाव जीते हैं। मासस और माले के विलय के बाद माले ने चंद्रदेव महतो को यहां से टिकट दिया था। चंद्रदेव महतो यहां इडिया गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी थे।
निर्मल महतो आजसू की टिकट से जीतने वाले एक मात्र प्रत्याशी हैं। वह पिछले कई चुनाव से इस सीट से प्रयास कर रहे थे। काफी कम मतो के अंतर से वह यह सीट जीते हैं।
