’टी.बी बीमारीः एक मानवशास्त्रीय अध्ययन’ :- डॉ. अभिषेक चौहान, रिसर्चर

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मुखर संवाद के लिये शिल्पी यादव
रांची : टीबी या क्षय रोग लाइलाज बीमारी नहीं है ,समय रहते इस पर काबू पाया जा सकता है। यह जानकारी लगभग सभी लोगो कों हैं परन्तु आज के युग मे भी हम लोग टी.बी की कई महत्वपूर्ण बातो से अंजान है. झारखंड जैसे राज्य मे यह रोग काफी घातक सिद्ध हुए हैं. झारखण्ड मे लगभग कई वर्षो पूर्व में ही टी.बी के रोक थाम के लिए सेंटोरियम की इस्थापना की गई थी, जहा की टी.बी के रोगियों का सफल इलाज हो सके. उक्त बातें विश्व यक्ष्मा दिवस पर आज टीवी रोग के बारे में रिसर्च कर चूके और पीएचडी की उपाधि प्राप्त डॉ. अभिषेक चौहान से कई महत्वपूर्ण जानकारिया प्राप्त हुई. इन्होने अपनी च्ी.क् की रिसर्च टी.बी के मरीजो पर की हैं, जो मरीज अपने इलाज के लिए इटकी और राम कृष्ण मिशन सेंटोरियम में भर्ती हुआ करते है. डॉ.अभिषेक ने टी.बी के मरीजो का एक मानवशास्त्रीय अध्ययन या ।दजीतवचवसवहपबंस ैजनकल किया है, इन्होने मरीजो के लिए सेंटोरियम की उपयोगीता और गरीब मरीजो के लिए इसकी ज़रूरत के बारे मे रिसर्च कर यह बतलाने की कोशिश की है की आज के सन्दर्भ मे भी गरीब मरीजो के टी.बी से रोकथाम के लिए संतोरियम मिल का पत्थर साबित हो रही हैं.

डॉ.अभिषेक के द्वारा ट्यूबरक्लोसिस पर शोध से यह समझने की कोशिश की गई है कि और बेहतर इलाज के लिए हमे मरीजो के सामाजिक और उनके जीविकोपार्जन के साधनों को भी इस बीमारी से जोड़ कर देखने की ज़रूरत है. यहाँ तक की इस शोध में सेंटोरियम मे आ रहे मरीजो के टीबी से संक्रमित होने सबसे बड़े कारण उनके जीविकोपर्जन से सम्बंधित कारणों का पता चलता है.
जैसा की हम सभी जानते है कि टी.बी रोग के कारणों का पता माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस कई वर्षो पूर्व मे 24 डंतबी 1882 कों रोबर्ट कोच द्वारा ख़ोज कर ली गई थी इस लिए इस बीमारी कों हम कोचस डिजिज के नाम से भी जानते है. परन्तु आज भी झारखण्ड राज्य इस बीमारी से लड़ने मे कई चुनौतियों का सामना कर रहा है.जैसा की हम जानते हैं की, खांसी के साथ बलगम का आना, लगातार 2 सप्ताह से ज्यादा खांसी ,वजन कम होना, बलगम में खून आना ,भूख की कमी, रात में बुखार होना, सांस फूलना, सीने में दर्द टीवी के प्रमुख लक्षण है। ऐसा होने से तुरंत नजदीकी अस्पताल में जाकर संपर्क करना चाहिए। खानपान में कमजोरी भी रोगी की संख्या बढ़ाता है। इस रोग में फल, अंडा, नॉनवेज पोषण युक्त आहार, विटामिन डी खाने से रोगी को तंदुरुस्ती मिलती है। यहाँ तक की टीवी मरीजों को यहां वहां थूक खखार नहीं फेंकनी चाहिए क्योंकि यह तुरन्त फैलने वाली बीमारी है। इसे संक्रमित मरीजो कों मुंह पे कपड़ा रखकर एक दूसरे से बात करनी चाहिए। राज्य सरकार ने टीबी के मरीजों का नोटिफिकेशन अनिवार्य कर दिया है।

इसके तहत सरकार के अलावा निजी अस्पतालों, नर्सिग होम तथा चिकित्सकों को इस बीमारी के मरीज पाए जाने पर इसकी जानकारी सरकार को देना अनिवार्य है। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि इसके सभी मरीजों को डॉट्स की दवा दी जा सके, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी प्रमाणित किया है। डॉट्स की दवा की सुविधा सनाटोरियम मे पहले से मौजूद हैं, पर आज भि हमें टी.बी के मरीजो के इलाज़ के लिए सनतोरियम की आवश्यकता है.मुख्य बात जो की डॉ. अभिषेक के च्ी.क् ज्ीमेपे से यह बात बाहर आई है कि मरीजो मे टी.बी बीमारी होने की मुख्य वजहों मे पलायान और इन लोगो कों कमाई के लिए दुसरे राज्यों मे जाकर बिना किसी सुविधा के ईठा भाटा मजदुरी और घरो मे घरेलू कामगारों के रूप मे कार्य करना पड़ता है.दुसरे राज्यों मे कार्य करने के दौरान ये लोग स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं के ईलाज के लिए किसी प्रकार की चिकित्सा सुविधाओं का लाभ नहीं ले पाते है. इनके स्वास्थ्य मे अगर गिरावट आती हैं तो वहा के लोग इन्हें काम से निकाल देते हैं इस कारण इन्हे वापस अपने घर आना पड़ता है.यहाँ आने के बाद इनकी ईलाज हो पाती हैं, पर रिसर्च के दौरान यह देखा गया की टी.बी से संक्रमित मरीजो मे जब खासी हुई तो इन्होने दवाखानो से खासी की सिरप ले कर उस खासी पर काबू पाने की कोशीस की और कुछ मरीज इस मे सफल भी हो गए.लेकिन कुछ दिनों बाद जब फिर से खासी शुरू हो गई तो यह लोग अपने घर वापस आकार ईलाज कराते है जो यह जानते है की यह साधारण खासी नहीं है.वही दूसरी ओर कुछ मरीज कई बार इसे खासी मात्र समझ कर खासी की दवा खाते रहते है मगर जब इनके खासी मे खून आती है तो ये ईलाज के लिए घर वापस आजाते है.कुछ मरीज तों ईलाज के दौरान ही वापस अपने काम पर चले जाते है.इस कारण इनका ईलाज पूरा नहीं हो पट और ये फिर से टी.बी की चपेट मे आ जाते है जो बाद मे एमडीआर टी.बी मे बदल जाती है.जिसका ईलाज काफी मुश्किल और कई बार तो जान लेवा साबित हो जाती है.

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