पत्थरगड़ी की घटनाओं को लेकर झारखंड की रघुवर सरकार एकबार फिर से कमरकसी

Jharkhand झारखण्ड


पत्थरगड़ी

रांची: झारखंड की रघुवर सरकार को नाक में दम करनेवाली आदिवासी इलाकों में की गयी पत्थरगड़ी एकबार फिर से सरकार को परेशान करनेवाली है जिसे देखते हुए सरकार के अधिकारियों को जिम्मेवारी के साथ समस्या का समाधान करने का आदेश दिया गया है। खूंटी-पश्चिमी सिंहभूम के क्षेत्रों में एक बार फिर नासूर बनती जा रही पत्थलगड़ी की समस्या को खत्म करने के लिए सरकार के स्तर पर भी कवायद तेज कर दी गई है। सरकार के स्तर पर दोनों ही जिलों के उपायुक्तों को यह निर्देश दिया गया है कि वे ग्रामीणों से संवाद कायम कर पत्थलगड़ी की समस्या को दूर करें। सरकार का मानना है कि ग्रामीणों से जितनी दूरियां बढ़ेगी, ऐसी समस्याएं पनपती रहेंगी। ग्रामीण दूसरों के बहकावे में आते रहेंगे। प्रशासनिक विफलता के कारण ही पत्थलगड़ी की घटनाएं हो रही है। पुलिस अधिकारियों का भी तर्क है कि पत्थलगड़ी को बलपूर्वक नहीं रोका जा सकता है। इसे दूर करने में पुलिस की भूमिका छोटी है, बड़ी भूमिका विकास कार्य से जुड़े विभागों की है। कई अन्य मैकेनिज्म को विकसित कर, गांवों में विकास, ग्रामीणों के सुख-दुख का सहभागी बनकर ही इस समस्या को दूर किया जा सकता है। ग्रामीणों का हमदर्द बनकर ही उन्हें अपना बनाया जा सकता है। उन्हें जिसका भय है, यह भय असामाजिक तत्वों ने पैदा किया है। उस भय को उनके मन से दूर करना होगा, तब ही पत्थलगड़ी की समस्या को दूर किया जा सकेगा।
पत्थलगड़ी के खिलाफ लड़ रहे कुछ सामाजिक संगठनों का दावा है कि खूंटी में एक साल पहले जिस रफ्तार से पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई हुई थी, उस रफ्तार से कार्य होता तो पत्थलगड़ी की समस्या खत्म हो जाती। ग्रामीण समझने लगे थे कि पुलिस-प्रशासन उनके विकास में उनकी मदद कर रही है। जैसे ही पुलिस-प्रशासन सुस्त पड़ी, एक बार फिर असामाजिक तत्व गांवों में सक्रिय हो गए। देखते ही देखते खूंटी के सीमावर्ती इलाकों में पत्थलगड़ी को फिर हवा देने लगे। एक बार फिर खूंटी-पश्चिमी सिंहभूम की सीमा पर पत्थलगड़ी समर्थक सक्रिय हो चुके हैं और भविष्य के लिए फिर खतरा बनते जा रहे हैं। चाईबासा के इलाके में पत्थरगड़ी को लेकर सरकार के साथ साथ सामाजिक संगठनों ने भी अपनी सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है।

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