
रांची से अशोक कुमार की रिपार्टः-
रांची: झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के लिये आसान नहीं होगा भाजपा में शामिल होना। बाबूलाल मरांडी अकेले भाजपा में शामिल नहीं हो पायेंगे। बल्कि दोनों विधायक एक साथ शामिल होंगे। झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी भाजपा के काफी नजदीक आ चुके हैं। उनकी गतिविधियां भी भाजपा में जाने की ओर ही इशारा कर रही हैं। भाजपा द्वारा विधायक दल का नेता पद खाली रखने से उनके इस पद पर जाने के भी संकेत मिलते हैं। बाबूलाल मरांडी भाजपा में जाएंगे, इसकी अनौपचारिक पुष्टि उनके दल के वरीय नेता भी कर रहे हैं। लेकिन बाबूलाल मरांडी भाजपा में जाएंगे या उनकी पार्टी का भाजपा में विलय होगा, यह कैसे संभव होगा, सबसे बड़ा सवाल है। भाजपा में उनके जाने या झाविमो के भाजपा में विलय की राह में दल बदल कानून के भी रोड़े हैं। यह कानून उन्हें किस हद तक भाजपा में जाने का मार्ग सुलभ या दुरूह करता है, कहां-कहां और कौन-कौन से रोड़े हैं। इस प्रकरण का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि झाविमो के शेष दोनों विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की बाबूलाल मरांडी के साथ भाजपा में जाने को तैयार होते हैं या उससे पहले कोई अलग निर्णय लेते हैं। यदि पार्टी प्रमुख के नाते बाबूलाल मरांडी भाजपा में पार्टी विलय की घोषणा करते हैं और झाविमो विधायक दल के नेता प्रदीप यादव कहते हैं कि पार्टी का पूरी तरह से विलय नहीं हुआ है। मैं और मेरे साथ के दूसरे सदस्य झाविमो के ही सदस्य बने रहेंगे, तब यह विषय दल बदल के तहत फिर स्पीकर के पास निर्णय के लिए आ जाएगा। यह आपत्ति विधानसभा के किसी दूसरे सदस्य द्वारा भी स्पीकर के सामने उठायी जा सकती है। फिर किसी पार्टी के विधायक दल के सभी सदस्य यदि विलय पर सहमत नहीं होते हैं, तो विभाजन की स्थिति में तीन में दो सदस्यों का एकमत होना आवश्यक हो जाएगा। 2014 में झाविमो के आठ विधायक जीत कर आये। छह विधायक टूट कर भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद बाबूलाल मरांडी और प्रदीप यादव ने स्पीकर के कोर्ट में याचिका दायर की। उसमें उन्होंने कहा कि पार्टी ने विलय की सहमति नहीं दी है। कार्यकारिणी में भी कोई निर्णय नहीं हुआ है। जिस बैठक का छह विधायक हवाला दे रहे हैं, वह असंवैधानिक बैठक थी। इसलिए छह विधायकों का पार्टी छोड़ना माना जाएगा, न कि विलय माना जाएगा। स्वेच्छा से इनका पार्टी छोड़ना दल-बदल कानून के दायरे में आता है। वहीं छह विधायकों ने स्पीकर कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह तर्क देते रहे कि बाबूलाल मरांडी की अध्यक्षता में कोई कार्यकारिणी थी ही नहीं। इसके लिए दलादली में आमसभा हुई। जानकी यादव को अध्यक्ष चुना गया। उनकी अध्यक्षता में हुई हजारों कार्यकर्ताओं की आमसभा में झाविमो के भाजपा में विलय का निर्णय लिया गया। 6 विधायकों ने भी समर्थन किया, इसलिए छह विधायक भाजपा के मेंबर हुए। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि दल बदल कानून के स्पिरिट में सदन के सदस्य हैं, न कि पार्टी। कोई सदस्य पार्टी के अनुशासन को मान रहा है अथवा नहीं, यह देखना स्पीकर के दायरे में नहीं है। स्पीकर के कोर्ट में मामला आने पर उसे मुख्य रूप से यह देखना होता है कि विलय का उस दल का दो तिहाई सदस्य समर्थक हैं अथवा नहीं। तत्कालीन स्पीकर दिनेश उरांव ने अपने फैसले में गुवाहाटी हाईकोर्ट के एक फैसले को आधार बनाया। जिसमें कहा गया है कि मर्जर में यह देखा जाना है कि सदन में उस पार्टी के दो तिहाई सदस्य तैयार हैं कि नहीं। चूंकि झाविमो के दो तिहाई सदस्य एक मत थे, इसलिए सदस्यता पर आंच नहीं आई। झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के विदेश दौरे से लौटने के बाद 16 जनवरी तक मोर्चा की नई कार्यकारिणी के गठन की संभावना है। इसके बाद ही पार्टी का रुख स्पष्ट हो पाएगा, साथ ही झाविमो के भाजपा में विलय के कयास पर भी विराम लग सकेगा। बहरहाल इस पूरे प्रकरण पर बाबूलाल मरांडी की चुप्पी से झाविमो में ऊहापोह की स्थिति है। पार्टी के शेष दो विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की भी इस मामले में कुछ स्पष्ट बोलने की स्थिति में नहीं है। अलबत्ता प्रदीप जहां पार्टी की मौजूदा गतिविधियों को विलय की राह की ओर बढ़ते कदम करार देते हैं तो बंधु तिर्की कहते हैं- धुआं है तो कहीं आग भी होगी। आगे क्या होगा, हम भी इंतजार कर रहे हैं, आप भी करें। पार्टी के निवर्तमान केंद्रीय महासचिव अभय कुमार सिंह के अनुसार बाबूलाल मरांडी ने कभी सौदे की राजनीति नहीं की है। उन्होंने मुख्यमंत्री पद तक का त्याग किया है। ऐसे में राज्यहित में जो भी फैसले लेंगे, पूरी कार्यसमिति इसका समर्थन करेगी। उनका दावा है कि बाबूलाल ने अबतक न तो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात की है और न ही भाजपा में किसी पद के लिए विचार-विमर्श ही किया है। केंद्रीय कार्यसमिति भंग होने के बाद सारे फैसले का अधिकार अध्यक्ष होने के नाते बाबूलाल मरांडी को दिया गया है। कार्यकारिणी के गठन के बाद की रणनीति भी वे खुद तय करेंगे। झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीम बाबूलाल मरांडी के भाजपा में जाने की अटकलें हैं। साथ ही पार्टी के हाल में उनके साथ जीतकर विधानसभा पहुंचे पोडैयाहाट विधायक प्रदीप यादव व बंधु तिर्की के पार्टी में शामिल होने न होने को लेकर तरह-तरह की चर्चा है। विधायक प्रदीप ने अपने आवास पर इन अटकलों को खारिज करते हुए कहा कि उनका भाजपा में जाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। उन्होंने कहा कि विगत दस साल की मेरी राजनीतिक यात्रा देखी जाए तो कोई भी सहसा पता कर सकता है मैैं इस दौरान झारखंड के आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यकों व पिछड़ों के हित को लेकर लड़ाई लड़ता रहा हूं। विगत दस वर्षों में भाजपा ने इन समुदायों की अनदेखी कर इनके अहित में कई काम किए हैैं। हर मौके पर इनके हक अधिकार को छीनने की कोशिश की गई है। इसलिए मेरा जैसा व्यक्ति भाजपा में जाएगा यह सवाल ही पैदा नहीं होता है। इस दौरान उन्होंने कहा कि हो सकता है कि झारखंड विकास मोर्चा का कदम उस ओर हो और झाविमो के अधिकांश नेता मुखातिब भी हैं। पर व्यक्तिगत तौर पर मेरी भाजपा या कांग्रेस के किसी भी नेता से बातचीत नहीं हुई है। मैं जहां हूं, वहीं रहूंगा। इस दौरान बाबूलाल मरांडी के भाजपा में जाने के कयासों पर उन्होंने कहा कि बाबूलाल मरांडी राज्य के शीर्ष नेता हैं। मैं उन्हें अपना एक आदर्श के रूप में मानता हूं लेकिन उनके बारे में बहुत कुछ नहीं कह सकता। हालांकि सूत्रों की मानें तो प्रदीप यादव अपने राजनीतिक कयासों को लेकर 16 जनवरी को कोई बड़ी घोषणा कर सकते हैं। रांची स्थित अपने आवास पर प्रदीप यादव राजनीतिक रूप से बड़े फैसले की घोषणा कर सकते हैं।
