भाजपा के नेता भी नहीं चाहते हैं कि गोड्डा के सांसद निशिकांत दूबे जीते !

Jharkhand झारखण्ड

गोड्डा: झारखंड बीजेपी की भी अजब कहानी लोकसभा चुनाव में दिखायी दे रही है। झारखंड में बीजेपी के नेताओं में आपसी कटुता किसी से छुपी हुई नहीं है। गोड्डा के सांसद निशिकांत दूबे फिलहाल बीजेपी के प्रत्याशी के रूप में तीसरी बार संसद जाने की तैयारी में लगे हैं। निशिकांत दूबे को अपनी जीत को लेकर काफी मन में उम्मीदें लगा बैठे हैं, लेकिन बीजेपी के कई नेता ऐसे हैं जो कभी भी नहीं चाहते हैं कि निशिकांत दूबे जीतकर संसद में फिर से प्रवेश कर सकें। निशिकांत दूबे दो बार सांसद के रूप में गोड्डा से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। लेकिन इस बार निशिकांत दूबे का रास्ता मुश्किल दिखायी दे रहा है। निशिकांत दूबे का रास्ता रोकने के लिये झारखंड विकास मोर्चा के विधायक प्रदीप यादव को मैदान में उतारा है। प्रदीप यादव इस बार यादव और मुस्लिम मतदाताओं के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना चाहते हैं। वहीं निशिकांत दूबे का रास्ता रोकने के लिये बीजेपी के नेता भी अंदर ही अंदर भीतरघात कर रहे हैं। निशिकांत दूबे रिंकी झा प्रकरण को लेकर मुद्दा बनाने की फिराक में हैं तो वहीं पीएम नरेन्द्र मोदी के मंच से इस प्रकरण को लेकर कोई चर्चा नहीं होना मामले को खटाई में डाल रहा है।
बीजेपी के अंदर निशिकांत दूबे के अहम को लेकर काफी चर्चा रहती है। निशिकांत दूबे झारखंड भाजपा के प्रदेश कार्यालय में पैर रखना तक मुनासिब नहीं समझते हैं। प्रदेश नेतृत्व से खुद को उपर समझनेवाले निशिकांत दूबे केवल ताला मरांडी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद ही प्रदेश कार्यालय में अपना पैर रखे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान जब पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और प्रदेष अध्यक्ष रवीन्द्र राय प्रदेष कार्यालय में प्रेस वार्ता कर रहे थे ठीक उसी समय निषिकांत दूबे रांची के ही एक प्रसिद्ध होटल में प्रेस को संबोधित कर रहे थे। प्रेस के पत्रकारों को समझ में नहीं आया कि बीजेपी के नेता अलग-अलग प्रेस वार्ता क्यों कर रहे हैं ? इसे समझने के लिये पत्रकारों को काफी मत्थापच्ची करनी पड़ी थी।
निषिकांत दूबे भाजपा के पूर्व राश्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी से काफी नजदीक थे जिसके कारण 2009 में केन्द्रीय नेतृत्व ने इनपर भरोसा करके संथाल की सभी 18 सीटों में प्रत्याषी तय करने का जिम्मा सौंप दिया था। 2009 के लोकासभा चुनाव जीतने के बाद निशिकांत दूबे ने संथालपरगना के 18 सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी तय करने के लिये जिम्मेवारी केन्द्रीय नेतृत्व से ले ली थी, जिसमें कई ऐसे चेहरों को निशिकांत दूबे ने टिकट दिलावा दिया था उसमें कई नेता चुनाव हार गये। मधुपुर से राज पलिवार का टिकट कटवाकर निशिकांत दूबे ने अभिषेक आनंद झा को टिकट दिलवाये जो तीसरे स्थान पर चले गये थे। 2005 में राज पलिवार के विधायक रहते हुए उनका टिकट कटवाकर विधानसभा चुनाव से बाहर रखा था। फिलहाल राज पलिवार रघुवर सरकार में मंत्री है और राज परिवार की निशिकांत दूबे से राजनीतिक प्रतिद्वंदिता किसी से छुपी नहीं हुई है। राजपरिवार का विधानसभा क्षेत्र मधुपर भी गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में ही आता है जिसके कारण निशिकांत दूबे ने अपने नजदीकी आदमी को चुनाव कार्य और बूथ प्रबंधन का जिम्मा सौंपा है। राजपलिवार और निशिकांत दूबे की राजनीतिक प्रतिद्वंदिता निश्चित ही निशिकांत दूबे को नुकसान पहुंचा सकती है। निशिकांत दूबे को मधुपुर से अधिक मतो के मिलने की उम्मीद है। मधुपुर में अल्पसंख्यकों की भी काफी तादाद है जिसके कारण निशिकांत दूबे के प्रतिद्वंदी प्रदीप यादव भी इसी विधानसभा से काफी उम्माीदें लगाये बैठे हैं। यदि मधुपुर में राज पलिवार अपनी पूरी ताकत निषिकाांत दूबे के लिये नहीं लगाते हें तो निश्चित ही निषिकांत दूबे को राज पलिवार से प्रतिद्वंदिता काफी महंगी पड़ेगी।
महगामा के विधायक अशोक भगत और निशिकांत दूबे के भी प्रतिद्वंदिता जगजाहिर है। अषोक भगत और निषिककांत दूबे के छत्तीस के रिष्ते से संथालपरगना का बच्चा-बच्चा वाकिफ है। अषोक भगत को 2009 में निशिकांत दूबे के रंजिष के कारण ही हार का सामना करना पड़ा था। अषोक भगत संथालपरगना में बीजेपी के संगठन प्रभारी थे लेकिन निषिकांत दूबे की नाराजगी के कारण ही संगठन से उनको प्रभार मुक्त करके प्रदेष उपाध्यक्ष प्रदीप वर्मा को यह जिम्मेवारी सौंपी गयी है। अषोक भगत के साथ निषिकांत दूबे के रिष्ते अच्छे नहीं होने के कारण महगामा विधानसभा में चुनाव प्रबंधन की जिम्मेवारी सांसद निषिकांत दूबे ने अपने रिष्तेदार को दे दी है। निशिकांत दूबे ने बीजेपी के साथ खुद की बूथ कमेटियों के सहारे चुनाव गोड्डा में लड़ रहे हैं। निषिकांत दूबे के प्रदेष के बडे़ नेताओं से रिश्ते अच्छे नहीं है। पूर्व मुख्यंत्री अर्जुन मुंडा से निशिकांत दूबे से किस हद तक खराब है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अर्जुन मुंडा की 2011 में बनी सरकार को निषिकांत दूबे ने अपने बयानों के जरिये गिराने में अहम भूमिका अदा की। 2011 में बीजेपी और जेएमएम की साझा सारकार बनी थी जिसके मुखिया अर्जुन मुंडा थे लेकिन निषिकांत दूबे ने हमेषा शिबू सोरेन की आलोचना करके जेएमएम और बीजेपी के बीच गहरी खायी पैदा कर दी। 2016 में निशिकांत दूबे ने बीजेपी के विधायक ताला मरांडी को प्रदेष अध्यक्ष दिल्ली में लाॅबिंग करके बनाने का काम किया था लेकिन ताला मरांडी को प्रदेष के नेताओ ंने केन्द्रीय नेतृत्व के समक्ष लाॅबिंग करके हटवाया जिसके कारण भी निषिकांत दूबे की दूरियां प्रदेष नेतृत्व से हो गयी। संथाल के एक नेता से फिलहाल निशिकांत दूबे की नहीं बन रही है जिसके कारण निषिकांत दूबे प्रदेष नेतृत्व पर कम भरोसा कर रहे हैं। प्रदेष के एक संगठन के नेता के कारण निषिकांत दूबे ने अपने स्तर पर गोड्डा में बूथ कमेटी बनायी है। निशिकांत दूबे ने हमेशा ही झारख्ंाड में बड़े नेता की भूमिका अदा करने की कोषिष की लेकिन उनका भाग्य और प्रदेष के नेताओं ने साथ नहीं दिया।
निशिकांत दूबे 2009 के लोकसभा चुनाव में झामुमो के प्रत्याषी के रूप् में दुर्गा सोरेन के कारण जीत पाये थे। 2009 में दुर्गा सोरेन को लगभग 89 हजार वोट मिले थे जो निशिकांत दूबे की जीत का बड़़ा कारण थे। वहीं 2014 में प्रदीप यादव और फुरकान अंसारी के अलग-अलग चुनाव लड़ने के कारण ही निशिकांत दूबे चुनाव जीत पाये। हालंाकि निशिकांत दूबे ने विकास को लेकर गोड्डा की जनता के लिये काफी कुछ किया है लेकिन विकास के बजाय जातीय समीकरण उनपर काफी हावी होता दिखायी दे रहे हैं। गोड्डा में आदिवासी, यादव और मुस्लिम वोट बैंक ने काफी मुश्किलें खड़ी कर दी है।
निशिकांत दूबे फिलहाल गोड्डा की जंग में फंसे हुए नजर आ रहे है जिसमें उनके बीजेपी के नेता भी उनके चक्रव्यूह में फंसाने में लगे हुए हैं।

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