
मुखर संवाद के लिये शिप्रसाद यादव की रिपोर्टः-
हाजीपुर: स्वर्गीय रामविलास पासवान की विरासत को बचाने के लिये उनके बेटे चिराग पासवान पहली बार हाजीपुर के रण में उतरे हैं जहां उनको राजद से कड़ी टक्कर मिल रही है। राजद की ओर से शिवचन्द्र राम को चुनावी अखाड़े में उतारा गया है। बिहार के हाजीपुर में विरासत बनाम बदलाव की पैंतरेबाजी में जातियां निर्णायक हैं, लिहाजा दोनों ओर से कुनबों की गांठें जोड़ी जा रहीं। जमुई से छलांग लगा हाजीपुर आए लोजपा के चिराग पासवान (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्व-घोषित हनुमान) की दिक्कत बढ़ने लगी थीं, लेकिन 13 मई की जनसभा में मोदी पीठ थपथपा गए हैं, तबसे जान में जान आई है। फिर भी किसी बिरादरी का भरोसा नहीं।भरोसा तो परिवार और पारस का भी नहीं। राम नाम का आसरा है और राजद यह कहते फिर रहा कि उसे तो शिव का भी आसरा है और राम का भी, क्योंकि उनके प्रत्याशी पिछली बार मात खाए शिवचंद्र राम हैं। मगर उनकी परेशानी बहुत बोलने वाले राजद समर्थकों से बढ़ रही।चिराग के हाजीपुर आने का कारण उत्तराधिकार के संघर्ष के साथ एंटी-इनकंबेंसी भी है। पिता के पुण्य-प्रताप और मोदी की माया-महिमा से इतर गिनाने के लिए उनका अपना कुछ नहीं। व्यवहार-कुशलता और सर्व-सुलभता पर भी प्रश्न-चिह्न है।
शिवचंद्र आठों पहर उपलब्ध तो हैं, लेकिन उनकी पहुंच पटना और लालू से आगे की नहीं। इधर हाजीपुर को सरकार में रहने की लत है। मोदी भी इसका संकेत दे गए हैं। लोग उधेड़बुन से निकलने लगे हैं। परंपरा का निर्वहन हुआ तो शिवचंद्र लगातार दूसरी हार के लिए अभिशप्त होंगे, अन्यथा यहां पासवान परिवार की उपलब्धि दो स्वजन (रामविलास और पारस) तक सिमटकर रह जानी है। पासवान परिवार को हाजीपुर का स्नेह पिछले साढ़े चार दशकों से मिल रहा। रामविलास ने अलग-अलग सरकारों में पांच प्रधानमंत्रियों संग काम किया। लालू ने राजनीति के मौसम विज्ञानी तक की उपमा दे दी थी। मगर पारस उसमें चूक गए और चिराग उसके लिए जूझ रहे। उन्हें दो मोर्चों पर लड़ना पड़ रहा। एक लड़ाई प्रतिद्वंद्वी शिवचंद्र से है और दूसरी आहत हृदय चाचा पशुपति पारस से। दो स्वरूप में सहयोग भी है। एक पिता की विरासत से और दूसरा मोदी की सियासत से।
युवाओं की टोली कह रही कि देश के साथ आगे बढ़ने में ही कल्याण है। मिलनसार पासवान ने हाजीपुर को बहुत कुछ दिया। पूर्व-मध्य रेलवे का मुख्यालय, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोकेमिकल इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल्स एंड रिसर्च आदि उनकी देन हैं। केंद्रीय मंत्री रहते पारस ने भी नेशनल इंस्टीट्यूट आफ फूड टेक्नोलाजी इंटरप्रेन्योरशिप एंड मैनेजमेंट की स्थापना का प्रयास किया। बहरहाल लोजपा विरासत के बूते विकास की कड़ी को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जता रही तो राजद संविधान और आरक्षण पर संकट की चेतावनी दे रहा। उसका पूरा प्रयास लड़ाई को अगड़ा बनाम पिछड़ा बनाने की है। चौतरफा शिकायत है कि चिराग सवर्णों के इशारे पर डोलते-बोलते हैं। शिवचंद्र कमजोर-कमतर वर्ग के चेहरा हैं। राघोपुर में नवादा के शिक्षक विपिन राय पूछते हैं कि हेलीकाप्टर (चिराग का चुनाव-चिह्न) कभी नीचे भी उतरेगा।बढ़ती-बुढ़ाती उम्र में पारस के लिए अब आगे की आशा नहीं और चिराग की लगाई आग कलेजे में सुलग रही। पारस मौन साध लिए हैं, लेकिन उनके दिमाग में उधेड़बुन मची है। उस उधेड़बुन ने चिराग की नींद उड़ा रखी हैं। सवर्ण समाज के कुछ लोग हाजीपुर में महापंचायत कर उनको चित्त करने की शपथ ले चुके हैं, लेकिन पूर्व विधायक रामा सिंह के लोजपा में आ जाने से कुछ दम मिला है।
राघोपुर के साथ महुआ और महनार का सामाजिक समीकरण शिवचंद्र राम को भारी बना देता है। हाजीपुर और लालगंज चिराग को। ऐसे में जीत की राह राजापाकर होकर निकलेगी। यहां 22-22 टोलों वाले राजापाकर और रामपुर रत्नाकर तो शिकायत के साथ मांगने के लिए भी मुंह खोल दिए हैं। 11 बच्चों वाली फुलझरिया देवी अपने परिवार में 60 से अधिक मतों का हवाला दे रहीं। ऐसी उम्मीदों को लोजपा के साथ राजद भी लपक लेने के लिए आतुर है।
