मुखर संवाद के लिये व्यूरो रिपोर्टः-
रांची : विधायक जी हद कर दी आपने! लोकतंत्र में माननीय की उपाधि और सम्मान इस लिये दी जाती है कि जनप्रतिनिधियों के उपर लाखों जनता की जिम्मेवारी होती है। लेकिन झारखंड के माननीय खुद अपने स्वार्थ में ही उन्हें मिली विशेषाधिकार का प्रयोग करते हैं। कोई माननीय अधिकारी के खिलाफ इसलिये विशेषाधिकार का प्रयोग करता है कि उनकी अवमानना हुई है लेकिन अब तो अपने बेवजह और गलती पर पर्दा डालने के लिये भी माननीय विधायक विशेषाधिकार का प्रयोग करने लगते हैं। भाजपा के विधायक इन दिनों अपने-अपने मर्यादा की सीमा लांघकर विशेषाधिकार का प्रयोग करने में लगे हुए है। संविधान की कौन सी धारा भाजपा के माननीयों को अधिकार देतेी हैं कि वे अपने लिये आंवटित आवास के बजाय दूसरे श्रेणी के आवास में जबरन रहें। लेकिन झारखंड भाजपा के विधायक अपनी मर्यादा को लांघकर इस अनैतिक कार्य में लगे हुए हैं। एक तो छह माह होने के वावजूद आवास खाली नहंी करते हें और उसपर से सरकार कार्रवाई के लिये आदेष अधिकारियों को देती है तो वह विशेषाधिकार का डर अधिकारियों में पैदा करते हैं। भाजपा के माननीय अनैतिक कार्य के लिये झारखंड हाई कोर्ट का भी सहारा लेने का प्रयास करते हैं।
इसकी बानगी भर देख लिजिये। बोकारो विधायक बिरंची नारायण ने रांची सदर के अनुमंडल पदाधिकारी और भवन निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता के खिलाफ विधानसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन के नियम-186 के तहत विशेषाधकार हनन के तहत मामला चलाने की मांग विधानसभा अध्यक्ष से की है। इसके लिये उन्होंने विधानसभाध्यक्ष रवीन्द्र नाथ महतो को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने कहा है कि आवास खाली कराने के मामले में पदाधिकारियों ने उन्हें अपमानित किया है। उन्होेंने विधानसभाध्यक्ष से यह मांग की है कि दोनों पदाधिकारियों के विरुद्ध विशेषाधिकार हनन के तहत मामला दर्ज किया जाए और पूरे प्रकरण की जांच और कार्रवाई के लिए इस मामले को विशेषाधिकार समिति को भेजा जाए। इस पत्र में बिरंची नारायण ने विस्तार से पूरे घटनाक्रम का उल्लेख किया है। बिरंची नारायण ने कहा कि उन्हें 10 मार्च 2013 को केंद्रीय पूल रांची का सरकारी आवास एफ टाइप बंगला संख्या 131 डोरंडा में आवंटित हुआ था। इसके बाद भवन निर्माण विभाग ने 14 फरवरी 2020 को मुझे आवास संख्या ई-275 सेक्टर टू एचइसी धुर्वा में आवंटित किया गया। लेकिन विभाग द्वारा मुझे कोई भी आवंटन संबंधित पत्र की प्रति उपलब्ध नहीं कराई गई। उन्होंने आवास खाली कराने को लेकर इस बीच भवन निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता और रांची सदन के अनुमंडल पदाधिकारी द्वारा किए गए पत्राचार का विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा कि इन दोनों पदाधिकारियों ने जानबूझकर एक निर्वाचित जन प्रतिनिधि को अपमानित और जलील करने के उद्देश्य से पत्र लिखा। विरंची नारायण ने अनुमंडल पदाधिकारी लोकेश मिश्रा के तीन जुलाई को प्राप्त पत्र के संबंध में कहा है कि एसडीओ ने उन्हें पूर्व विधायक कह कर संबोधित किया है। पत्र के अंशों का जिक्र करते हुए कहा कि उनसे 72 घंटे के अंदर आवास स्वतः खाली कराने को कहा गया। पत्र में यह भी लिखा गया कि इस अवधि के बाद आवास को बलपूर्वक खाली कराया जाएगा। बिरंची नारायण ने कहा कि अनुमंडल पदाधिकारी ने बिना 72 घंटे व्यतीत हुए अग्रिम कार्रवाई में ही दो दंडाधिकारी प्रतिनियुक्त करते हुए पुलिस अधीक्षक रांची से सशस्त्र बल जिसमें 20 पुरुष लाठी बल, 20 महिला आरक्षी लाठी बल एवं पुलिस पदाधिकारी की प्रतिनियुक्ति का आदेश चार जुलाई तक करने संबंधी आदेश निर्गत कर दिया। जो कि अनुमंडल पदाधिकारी की मेरे प्रति गलत मंशा को दर्शाता है। बिरंची नारायण ने कहा कि अनुमंडल पदाधिकारी मेरे लिए जिस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है, उससे मै काफी आहत हूं।
लेकिन सवाल बड़ा है कि आखिर माननीय विधायक महोदय को छह महीने बीतने के वावजूद भी अपना मकान खुद ही खाली करना चाहिये था। विरंची नारायण पहली बार विधायक चुनकर आये थे और उसके बाद पार्टी के ही अन्य विधायकों की अपेक्षा अधिक बड़े बंग्ले में रह रहे थे जिसके वे अधिकारी नहीं थे। विरंची नारायण जिस बंग्ले में रह रहे थे उसमें मंत्री बंग्ला हुआ करता था। दिसंबर 2019 में भाजपा सरकार के जाने के वावजूद वह बंग्ले में जबरन रह रहे थे। षायद उनको यह आभास भी नहीं था कि हेमंत सरकार उनकों बंग्ला से बेदखल कर देगी। लेकिन इतना जरूर है कि माननीयों को मिले विशेषाधिकार को वह जनता के हित में उपयोग करते तो षायद बेहतर होता लेकिन माननीयों को तो अपने स्वार्थ से मतलब है चाहे जनता जिस तरह रहे। जनता की बेहतरी और हित में कार्य करने के लिये ही विशेषाधिकार का अधिकार माननीयों को संविधान ने दिया है लेकिन हमारे माननीय इसे अपने स्वार्थ और हित में कर रहे हैं।
