संथाल के इलाके में भाजपा और महागठबंधन में जोरदार टक्कर, दुमका में लुईस मरांडी के सामने हेमंत सोरेन

Jharkhand झारखण्ड

संथाल के इलाके में भाजपा और महागठबंधन में जोरदार टक्कर, दुमका में लुईस मरांडी के सामने हेमंत सोरेन
दुमका से अशोक कुमार , केशरीनाथ यादव और दशरथ महतो की रिपोर्टः-
दुमका: दुमका से इस बार संथाल की लड़ाई बेहद ही रोचक हो गयी है। दुमका में मेडिकल काॅलेज और दुमका में एयरपोर्ट बनाने को लेकर भाजपा शहरी मतदाताओ के बीच जा रही है। वहीं भाजपा की लुईस मरांडी का हौसला दुमका लोकसभा चुनाव में भाजपा के सुनील सोरेन की जीत हौसला बनाये हुए हैं। वहीं हेमंत सोरेन के लिये शहरी मतदाताओं के बीच पिछड़ते हुए नजर आ रहे हैं वहीं मसलिया किे इलाके में झाविमो प्रत्याशी अंजला मूर्मू हेमंत के लिये परेशानी का सबब बनी हुई है। अंजला झामुमो के आधार वोटों में सेंध लगाती हुई नजर आ रही है। वहीं हेमंत सोरेन को अल्पसंख्यक ओर आदिवासी मतदाताओं का सहारा दिखायी दे रहा है।
झारखंड की उपराजधानी दुमका में भाजपा और झामुमो में ही मुख्य मुकाबला है। यह सीट इसलिए भी हॉट है कि कि यहां भाजपा की डॉ. लुईस मरांडी और झामुमो के हेमंत सोरेन फिर आमने-सामने हैं। शहरी क्षेत्र भाजपा के पक्ष में बोल रहा है तो ग्रामीण और कस्बाई इलाके झामुमो के पक्ष में खड़े हैं। कुल मिलाकर चुनावी लड़ाई गांव बनाम शहर का रूप धारण कर चुकी है। शहरी क्षेत्र में झामुमो के पुराने समर्थक ही आज भी पार्टी से जुड़े हैं।
लुईस शहरी क्षेत्र पर फोकस की हुई हैं तो हेमंत ग्रामीण क्षेत्रों को ही टार्गेट कर अपनी रणनीति को अंजाम देने में जुटे हैं। मारवाड़ी चैक पर ही परमेश्वर अग्रवाल कहते हैं कि किसी भी समुदाय विशेष के युवा और प्रबुद्ध अब किसी के नाम की माला जपने को तैयार नहीं है। नरेंद्र मोदी की सभा का भी असर है। हेमंत के सामने बड़ी चुनौती लगातार दो चुनावों में पार्टी को मिली हार का अंतर पाटना है। 2014 में वह लुईस से 4914 मतों से हार गए थे। लुईस मरांडी क्षेत्र में अपने विकास कार्यो के सहारे अपनी दुसरी बार दुमका से विधानसभा में प्रवेश करने की जुगत मं लगी हुई है। झामुमो अपने गढ़ को बचाने के लिये शिकारीपाड़ा में जोरदार प्रयास कर रही है। झामुमो का मजबूत गढ़ शिकारीपाड़ा रहा है। भाजपा यहां से चुनाव नहीं लड़ती रही है। भाजपा के सहयोगी दल रहे जदयू, आजसू और लोजपा ही यहां झामुमो को चुनौती देते रहे हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यह सीट लोजपा के लिए छोड़ी थी और शिवधन मुर्मू 21,010 मत लाकर तीसरे स्थान पर थे। दूसरे स्थान पर रहे झाविमो के परितोष सोरेन को भाजपा ने इस बार अपना प्रत्याशी बनाया है। भाजपा का बैनर व चुनाव चिन्ह मिलने से परितोष सीधे नलिन सोरेन को टक्कर देने की स्थिति में पहुंच गए हैं। लेकिन परितोष सोरेन को भाजपा के ही रहे श्याम मरांडी परेशान कर रहे हैं। टिकट नहीं मिलने के कारण श्याम ने इस बार आजसू का दामन थामा और चुनाव मैदान कूद पड़े। जेवीएम के राजेश मुर्मू भी नलिन सोरेन को परेशान कर रहे हैं। पत्ताबाड़ी में रामधन मुर्मू एक ही लाइन बोलते हैं- राजेश मुर्मू भाजपा को कम झामुमो के लिए ज्यादा दिक्कत पैदा कर रहे हैं। जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सालखन मुर्मू भी नलिन के सामने खड़े हैं। भाजपा के मुद्दे नलिन को ताकतवर बना रहे हैं। लगातार छह चुनावों में शेर रहे नलिन को यहां भाजपा तभी शिकस्त दे पाएगी, जेवीएम-झामुमो के आधार मतों में सेंधमारी कर सके।
महेशपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव तो 12 प्रत्याशी लड़ रहे हैं, पर चर्चा मिस्त्री सोरेन और स्टीफन मरांडी की ही है। तीसरा कोण बनाने की कोशिश में आजसू के सुफल मरांडी लगे हैं। माकपा के गोपीन सोरेन को भी अपने कैडरों का भरोसा है। सारठ विधानसभा क्षेत्र में मंत्री रणधीर कुमार सिंह व झाविमो के उदय शंकर सिंह उर्फ चुन्ना सिंह आमने-सामने हैं। अल्पसंख्यक मतों की झाविमो के पक्ष में हो रही गोलबंदी और स्वजातीय मतों पर मजबूत पकड़ के कारण चुन्ना सिंह रणधीर कुमार सिंह को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। यह अलग बात है कि झामुमो के परिमल कुमार सिंह उर्फ भूपेन सिंह लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में रणधीर झाविमो तो चुन्ना सिंह भाजपा प्रत्याशी थे। शशांक शेखर भोक्ता झामुमो प्रत्याशी थे, लेकिन इस बार उन्हें टिकट नहीं मिला। इस बार रणधीर भाजपा के और चुन्ना सिंह झाविमो के प्रत्याशी हैं। सारठ को भूमिहार बहुल क्षेत्र माना जाता है। लेकिन पिछड़े, अल्पसंख्यक और आदिवासी मतदाताओं की अच्छी संख्या है। ब्राह्मणों की भी ठीक-ठाक आबादी है। संथाल के चार प्रमुख सीटों में से दुमका में भाजपा ओर झामुमो में , सारठ में झाविमो और भाजपा में , जामा में झामुमो और भाजपा में और महेशपुर में भाजपा और झामुमो के बीच मुख्य मुकाबला दिखाई दे रहा है। संथाल की जंग में दुमका जिला बड़ी भूमिका दिखाई देगा।

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