सातवें चरण में जातिगत समीकरण हावी और जातीगत समीकरणों में महागठबंधन काफी आगे

Jharkhand झारखण्ड

लखनउः उत्तरप्रदेश इस बार भी केन्द्र की नयी सरकार को तय करेगा और किस तरह से केन्द्र मंें सरकार बनेगी इसे तय करने बके लिये उत्तरप्रदेश को समझना बेहद ही जरूरी है। सातवंे और अंतिम चरण में एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभाव वाराणसी के आस-पास की सीटों पर भी पडने की उम्मीद है तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा भी गोरखपुर में दांव पर लगी है। पूर्वांचल से दिल्ली का सफर तय करने की कोशिश में जुटे सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंकी हैं। वैसे तो पूर्वांचल के जातिगत समीकरण सपा-बसपा गठबंधन के पक्ष में नजर आते हैं, लेकिन राष्ट्रवाद और मोदी फैक्टर की वजह से केमिस्ट्री भाजपा के साथ दिखाई दे रही है।
लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण में कल उत्तर प्रदेश में पीएम नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट वाराणसी, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ महेंद्रनाथ पांडेय की सीट चंदौली, केंद्रीय रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा की सीट गाजीपुर, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल की मिर्जापुर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सीट रही गोरखपुर, महाराजगंज, देवरिया, सलेमपुर, बलिया, घोसी, मऊ, कुशीनगर, बांसगांव के साथ राबर्ट्सगंज में मतदान होगा। इस चरण में भी कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा भी दांव पर है।

वाराणसी लोकसभा सीट पर वैसे तो नरेंद्र मोदी को कोई टक्कर देता नहीं दिख रहा है, लेकिन यहां लड़ाई हार जीत के अंतर को लेकर है। भाजपा जहां मोदी के जीत के अंतर को छह से सात लाख रखना चाहती है। गठबंधन और कांग्रेस की कोशिश कड़ी टक्कर देने की है। पीएम मोदी के खिलाफ गठबंधन की तरफ से सपा की शालिनी यादव मैदान में हैं तो कांग्रेस ने फिर अजय राय पर भरोसा जताया है।
चंदौली लोकसभा सीट भी भाजपा के लिए बड़ी प्रतिष्ठा का सवाल है। यहां से पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ महेंद्रनाथ पांडेय मैदान में हैं। उन्हें गठबंधन के संजय चैहान और कांग्रेस की शिवकन्या कुशवाहा से टक्कर मिल रही है। यहां पर जातिगत समीकरण को देखते हुए कहा जा रहा है कि इस बार भाजपा की राह यहां आसान नहीं है।

गाजीपुर लोकसभा सीट पर केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा की प्रतिष्ठा दांव पर है। उनकी लड़ाई गठबंधन प्रत्याशी और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी से है। यहा पर अंकगणित की बात करें तो गठबंधन मजबूत दिख रहा है, लेकिन विकास कार्य और मोदी फैक्टर की वजह से मनोज सिन्हा भी मजबूती से चुनाव लड़ते नजर आ रहे हैं।

मिर्जापुर लोकसभा सीट पर इस बार मुकाबला त्रिकोणीय नजर आ रहा है। यहां से भाजपा की सहयोगी अपना दल के टिकट पर केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल मैदान में हैं। गठबंधन की तरफ से समाजवादी पार्टी से मछलीशहर से मौजूदा सांसद भाजपा छोडने वाले रामचरित निषाद को टिकट दिया है। कांग्रेस ने ललितेश पति त्रिपाठी पर दांव खेला है।
राबर्ट्सगंज लोकसभा सीट पर सभी प्रमुख दलों ने बाहरी प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। भाजपा ने यह सीट अपना दल को दी है, तो सपा-बसपा गठबंधन में यह सीट सपा के पास है। अपना दल से पकौड़ी लाल अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, तो समाजवादी पार्टी से भाई लाल कोल चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस ने भगवती चैधरी को मैदान में उतारा है। तीनों ही प्रत्याशी मिर्जापुर के हैं। पकौड़ी लाल 2009 में सांसद रह चुके हैं। पिछली बार सपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। इस बार उन्होंने अपना पाला बदलकर अपना दल से चुनाव लड़ रहे हैं।

घोसी लोकसभा सीट पर भी इस बार दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है। अब इस सीट पर सीधा मुकाबला गठबंधन और भाजपा के बीच है। यहां गठबंधन की तरफ से बसपा ने अतुल राय को मैदान में उतारा है तो भाजपा ने मौजूदा सांसद हरिनारायण राजभर को टिकट दिया है। बसपा के अतुल राय रेप के आरोप में फंसने के बाद से फरार चल रहे हैं और उनपर गिरफ्तारी तलवार लटक रही है। ऐसे में मतदाता भी पशोपेश में हैं कि यहां किसे वोट दिया जाए।

कुशीनगर सीट कभी कांग्रेस का गढ़ रही है। इस सीट से पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह एक बार फिर कांग्रेस की वापसी कराने के लिए मैदान में हैं। उनका मुकाबला भाजपा के विजय दुबे और गठबंधन के नथुनी कुशवाहा से है। इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय होने की वजह से भाजपा को फायदा मिल सकता है। भाजपा से यहां से सांसद रहे राजेश पाण्डेय का टिकट काटा है।

गोरखपुर लोकसभा सीट को भारतीय जनता पार्टी का गढ़ कहा जाता है। इस सीट पर बीते करीब 29 वर्ष से भाजपा का दबदबा रहा है। 2018 में उपचुनाव में उसका यह ताज समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन के प्रत्याशी प्रवीण निषाद ने छीन लिया। इस सीट पर संभवतरू पूरे देश की नजरें टिकी होंगी। इस सीट पर भाजपा ने एक्टर रवि किशन को उम्मीदवार बनाया है। उपचुनाव में गठबंधन में सपा के कोटे में गई गोरखपुर सीट पर रामभुआल निषाद प्रत्याशी हैं। पिछड़ों के बीच मजबूत पकड़ वाले नेता रामभुआल भाजपा को कांटे की टक्कर दे रहे हैं।
महाराजगंज लोकसभा सीट पर इस बार मुकाबला दिलचस्प है। यहां से भाजपा के पंकज चैधरी मैदान में हैं। गठबंधन से सपा ने फिर से अखिलेश सिंह को टिकट दिया है। कांग्रेस ने भी यहां से सवर्ण प्रत्याशी सुप्रिया श्रीनेत को मैदान में उतारकर लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है।

देवरिया लोकसभा सीट भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। गोरखपुर इस जिले से सटा है। जहां पर योगी आदित्यनाथ का काफी प्रभाव माना जाता है। यह सीट भाजपा के लिए नाक का सवाल बन गई है। यहां से सांसद रहे कलराज मिश्र ने सीट छोड़ी तो रमापति राम त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाया गया है। गठबंधन का वोट अगर एक दूसरे को ट्रांसफर हो गया तो बसपा प्रत्याशी को जीत हासिल करने में कोई कठिनाई नहीं होगी।
सलेमपुर लोकसभा सीट पर भाजपा और गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। सीट गठबंधन में बसपा के हिस्से आई है। उसने अपने प्रदेश अध्यक्ष आरएस कुशवाहा को उम्मीदवार घोषित किया है। कांग्रेस ने एक बार फिर ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए वाराणसी के पूर्व सांसद राजेश मिश्र पर दांव लगाया है। भाजपा मौजूदा सांसद रविंद्र कुशवाहा पर ही दांव खेला है।
बांसगांव का चुनाव भी काफी कठिन होता है। करीब 19 लाख मतदाताओं वाले बांसगांव संसदीय क्षेत्र से सिर्फ चार कैंडिडेट मैदान में हैं, जो उत्तर प्रदेश में किसी भी सीट पर उम्मीदवारों की सबसे कम संख्या है। इस सीट पर सीधा मुकाबला भाजपा के कमलेश पासवान और गठबंधन प्रत्याशी बसपा के सदल प्रसाद के बीच है।
बलिया से भदोही के सांसद और किसान मोर्चा के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह मस्त को भाजपा ने टिकट दिया है। उनका मुकाबला गठबंधन की तरफ से सपा प्रत्याशी सनातन पांडेय से है। कांग्रेस ने राजेश मिश्र को मैदान में उतारा है, लेकिन मतदान से ठीक पहले कांग्रेस ने गठबंधन प्रत्याशी को समर्थन देकर भाजपा का खेल बिगड़ दिया है। सातवां चरण में पूर्वांचल के जातिगत समीकरण सपा-बसपा गठबंधन के पक्ष में नजर आते हैं लेकिन राष्ट्रवाद और मोदी फैक्टर की वजह से केमिस्ट्री भाजपा के साथ दिखाई दे रही है।

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