सुधा डेयरी प्लांट का कड़ाह फटने से दो मजदूर घायल

झारखण्ड

रांची के धुर्वा स्थित सुधा डेयरी प्लांट

रांची: रांची के धुर्वा स्थित सुधा डेयरी प्लांट का कड़ाह फटने से दो मजदूर घायल हो गयो। ब्लास्ट से दो मजदूर खौलते हुए दूध की चपेट में आने से झुलस गए। घायल मजदूरों में मनोज कच्छप और मिथुन शामिल हैं। इनमें मनोज की स्थिति गंभीर है। दोनों को गुरुनानक अस्पताल में भर्ती कराया गया, बाद में देवकमल अस्पताल रेफर कर दिया गया जहां, मनोज का इलाज चल रहा है। डॉक्टरों के अनुसार मनोज के शरीर का करीब 40 फीसद हिस्सा झुलस चुका है। दोनों हाथ, पैर, चेहरा जल चुका है। ब्लास्ट की सूचना मिलते ही मौके पर जगन्नाथपुर थाने की पुलिस मौके पर पहुंची और घटना की जानकारी ली। बिहार स्टेट कॉपरेटिव मिल्क प्रोडूयशर फेडरेशन के डेयरी प्लांट में काम करने वाले मजदूरों के अनुसार जो टैरा पैन ब्लास्ट हुआ है, वह डैमेज था। छह महीने से मजदूर उसे बदलने के लिए कह रहे थे। लेकिन प्लांट प्रबंधन इसपर ध्यान नहीं दे रहा था। बुधवार को भी कर्मियों ने कहा था कि इस प्लांट पर काम करना खतरनाक है। लेकिन प्रबंधन ने काम चलाने की बात कह टाल दिया। मिथुन, योगेंद्र यादव और मनोज कच्छप पेड़ा बना रहे थे। उसी दौरान अचानक पैन में ब्लास्ट हो गया। वहां से खौलता हुआ दूध मनोज कच्छप और मिथुन पर गिरा। इसमें सबसे ज्यादा मनोज झुलस गया। ब्लास्ट के बाद प्लांट में अफरा-तफरी मच गई। मजदूर भागने लगे। वहां काम कर रहे मजदूरों ने पैन पर पडने वाली स्टीम को जाकर बंद किया।
पैन ब्लास्ट होने से झूलसे मजदूर मिथुन ने पुलिस को दिए फर्द बयान में बताया कि टैरा पैन स्टीम से चलता है। उसमें सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है। पैन काफी पुराना हो चुका है। उसमें सेफ्टी वाल्व और प्रेशर मीटर नहीं लगा है। इससे पैन के गर्म होने की जानकारी भी नहीं मिल पाती। बदलने के लिए कई बार कहा गया, लेकिन उसपर अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया। मजदूर बताते हैं कि पैन के डैमेज रहने से उन्हें हर दिन डर सता रहा था कि ब्लास्ट हो सकता है। कई पाइपलाइन और अन्य उपकरण भी पुराने हैं। ऐसे में मजदूर जान से खेलकर वहां काम करते हैं। सुधा के डेयरी प्लांट में अप्रशिक्षित मजदूरों से काम करवाया जाता है। दैनिक मजदूरों को शहर के आसपास से बुलाकर काम करवाया जाता है। उनके लिए किसी प्रकार के सेफ्टी किट की व्यवस्था नहीं है। न ही प्लांट में अचानक हुए हादसों से बचाव के कोई उपाय है। मजदूरों के कहने के बावजूद सुरक्षा का ध्यान नहीं रखा जाता। सुधा डेयरी को लेकर अब सवाल उठने शुरू हो गये हैं और श्रम कानूनों की धज्जियां जिस तरह से उड़ायी जा रही है उससे यह प्रतीत होता है कि कानून के नियम फैक्ट्रियां लागू नहीं करती हैं।

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