हार के डर से भागे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या से गोरखपुर, भाजपा आलाकमान के कहने पर भी योगी ने गोरखपुर से ही चुनाव लड़ना बेहतर समझा

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मुखर संवाद के लिये शिवकुमार यादव की रिपोर्टः-
लखनउ : भले ही बीजेपी अयोध्या में बने रहे राममंदिर का मुद्दा देशभर में भूनाने की तैयारी में हो लेकिन हार के डर से यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने गृहनगर गोरखपुर से ही चुनाव लड़ने में अपनी भलाई समझी। योगी आदित्यनाथ को ब्राहाणों के विरोध के डर से अयोध्या से भागकर गोरखपुर से चुनाव लड़ने का फैसला किया है। भाजपा ने पहली ही सूची के साथ यह घोषणा कर चौंका दिया है कि सीएम योगी आदित्यनाथ गोरखपुर शहर से चुनाव लड़ेंगे। चौंकने की वजह ये कि अब तक यह लगभग तय माना जा रहा था कि वे अयोध्या से चुनावी रण में उतरेंगे। पार्टी हाईकमान की भी मंशा यही थी। योगी जैसा कट्‌टर हिंदुत्व का चेहरा अयोध्या से उतरता तो पूरे प्रदेश में वोटों के ध्रुवीकरण की उम्मीद ज्यादा थी। मगर खुद योगी अपने गढ़ गोरखपुर से उतरकर पहले अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहते थे। दरअसल, अयोध्या ऐसी सीट है, जहां 93.23þ आबादी हिंदू होने के बावजूद भाजपा की जीत तय नहीं रही है। 2012 में यह सीट सपा ने जीती थी, 2017 में मोदी-योगी लहर में भाजपा के हाथ आई। इस बार समीकरण क्या बनेंगे, अभी यह तय नहीं है।2012 के चुनाव में सपा के पवन पांडे जीते थे। भाजपा के लल्लू सिंह और बसपा के टिकट पर लड़े वेदप्रकाश गुप्ता तीसरे स्थान पर थे। बाकी पार्टियों और निर्दलीयों का वोट शेयर भी ठीक-ठाक था।2017 के चुनाव का वोट शेयर बताता है कि सपा का वोट बैंक ज्यादा नहीं खिसका। बसपा का वोट शेयर थोड़ा बढ़ा। लेकिन मोदी-योगी लहर में बाकी सभी पार्टियों और निर्दलीयों का सूपड़ा साफ हो गया। सिर्फ 5.92þ वोट मिले। यानी 2012 के मुकाबले 22þ वोट घटे जो सीधे भाजपा को गए।योगी आदित्यनाथ यदि गोरखपुर क्षेत्र से बाहर रहते तो, शहरी के साथ ही आसपास के 17 विधानसभा सीटों पर असर पड़ने के आसार थे। गोरखपुर ग्रामीण के साथ ही पिपराइच, चौरीचौरा की सीट भी फंसती हुई दिखाई दे रही थी। कुशीनगर में स्वामी प्रसाद मौर्या के अलग होने से पडरौना, तमकुहीराज, फाजिलनगर की सीट पर भी सपा का कब्जा होता दिख रहा था। क्योंकि, यहां पर कांग्रेस के साथ ही मौर्या का दबदबा है। संत कबीर नगर में तीन विधानसभा सीट में खलीलाबाद की सीट हाथ से निकलती दिखाई दे रही थी।

अयोध्या विधानसभा क्षेत्र का जातीय गणित हमेशा गड़बड़ होता रहा है। यहां कभी भी हार-जीत में जातीय समीकरण काम नहीं आया। ब्राह्मण बाहुल्य इस क्षेत्र में केवल तीन विधायक ब्राह्मण चुने गए और जब भी ब्राह्मण प्रत्याशी जीते, ब्राह्मण मतदाताओं का उनकी जीत में योगदान न के बराबर रहा। तीनों ही ब्राह्मण विधायक समाजवादी खेमे के रहे। सात बार ब्राह्मण प्रत्याशियों को यहां हार मिली, जिसमें से दो बार तो वे कम वोट बैंक वाले पंजाबी (खत्री) बिरादरी से हारे। अयोध्या सीट का सबसे अधिक पांच बार प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय जनता पार्टी के लल्लू सिंह क्षत्रिय हैं। जबकि क्षत्रियों का मत कभी निर्णायक नहीं रहा, लेकिन एक तरफा स्वजातीय प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने से क्षत्रिय प्रत्याशियों को हमेशा लाभ हुआ। चुनाव में जीत दर्ज करने वाले पहले क्षत्रिय प्रत्याशी कांग्रेस के सुरेंद्र प्रताप सिंह थे। तब ब्राह्मण कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता था। 1985 के चुनाव में जब वह जीते थे, तब संवेदना लहर कांग्रेस के पक्ष में बड़ा निर्णायक कारक बनी। क्षत्रिय मतदाताओं की अनुमानित संख्या इस क्षेत्र में लगभग 28 हजार है, जबकि ब्राह्मणों की संख्या लगभग 70 हजार है। पहली बार जब 1967 में वैश्य बिरादरी के बृजकिशोर अग्रवाल भारतीय जनसंघ से चुनाव जीते, तब वैश्यों की शहरी आबादी बहुत नहीं थी। उसके बाद विश्वनाथ कपूर ने बीकेडी के ब्राह्मण प्रत्याशी को हराया। 1974 के चुनाव में जनसंघ के वेद प्रकाश अग्रवाल ने बीकेडी के ही संत श्री राम द्विवेदी को बहुत ही कम अंतर से हराया। 1977 में जयशंकर पांडेय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े। वह समाजवादी खेमे के थे। ब्राह्मण कांग्रेस का वोट बैंक था।

लेकिन जनता लहर में वह जातीय समीकरण के विपरीत होते हुए भी चुनाव जीत गए, लेकिन अगले ही चुनाव में उन्हें चंद परिवारों तक सीमित खत्री बिरादरी के निर्मल खत्री से शिकस्त मिली। फिर सुरेन्द्र प्रताप सिंह कांग्रेस से जीते। उन्होंने भाजपा के पिछड़ा वैश्य वर्ग से आने वाले जुझारू नेता भगवान जायसवाल को हराया। इस विधानसभा क्षेत्र का गणित 22000 वैश्य, 22000 कायस्थ और लगभग इतने ही निषाद तय करते हैं। यादवों के 40 हजार और मुस्लिम के लगभग 27 हजार वोट जरूर हैं, लेकिन एक दो चुनावों को छोड़ दें तो ये कभी खेल बिगाड़ नहीं पाए। यूं तो दलितों के 50 हजार मत हैं, लेकिन इनके सहारे किसी की नैया पार नहीं लगी, बल्कि कुर्मी के लगभग 18 हजार मत ज्यादा दबाव बनाते हैं। 2007 के चुनाव में ब्राह्मण मतों के बूते जब इंद्र प्रताप तिवारी खब्बू चुनाव लड़े। उनके विरुद्ध लल्लू सिंह के साथ बसपा के अशोक तिवारी ने उनका खेल बिगाड़ दिया। वह 6000 मतों से हारे और सपा के आधार वोट पर ही सिमट गए। अगले चुनाव में उनकी बनाई जमीन पर सपा के पवन पांडेय ने फसल काटी। हालांकि, क्षत्रियों के वर्चस्व वाले मया बाजार के अयोध्या विधानसभा क्षेत्र से अलग होने से बदली परिस्थितियों ने उनकी राह आसान की और 1991 से चले आ रहे भाजपा के लल्लू सिंह का वर्चस्व तोड़ने में कामयाब रहे। ब्ड योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से चुनाव मैदान में उतारा गया है, यानी यहां 18 साल का एक रिकॉर्ड टूटने जा रहा है। दरअसल, यहां आखिरी बार मुलायम सिंह यादव गुन्नौर सीट से विधानसभा चुनाव लड़कर ब्ड बने थे। उन्होंने जनता के बीच अपनी लोकप्रियता साबित की थी। अब 2022 के विधानसभा चुनाव में विधान परिषद सदस्य यानी पिछले दरवाजे से विधायक बनकर सीएम बनने की परिपाटी पर ब्रेक लग रहा है।

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