कवियों की कविताओं में किसान आंदोलन

Jharkhand झारखण्ड साहित्य-संस्कृति

कामेश्वर_निरंकुश

किसान
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इतिहास साक्षी है
भारतीय किसान
बंजर भूमि को
अपनी मिहनत से
कुदाल, हल और ट्रेक्टर चलाकर
खेती योग्य उपजाऊ बनाते हैं
इसी कर्म में अपना समय लगाते हैं
उनकी यही रहती है आशा
खेतों में हरियाली छाए
पौधों में बालियाँ लगें
अन्न का दाना उसमें समाए
देश के जवान सीमा पर डटे
भारतीय किसान खेत में खटे
इन किसानों को
खेत, खलिहान औऱ मवेशियों के
काम से फुर्सत कहाँ
वे इस कार्य को छोड़
कभी नहीं जाते जहाँ- तहाँ
यह है राजनीति का षड़यंत्र
किसान के नाम चला रहे हैं तंत्र
किसान हैं धरती माँ के पुजारी
देश के सच्चे भक्त
ये कभी नहीं रहे अत्याचारी
राष्ट्र धर्म में ही बहाते हैं रक्त
राष्ट्रीय पर्व के दिन ये किसान
अपने घर में सपरिवार बैठकर
टीवी, अन्य चैनलों से देखते हैं
तिरंगा का झंडोतोलन
वन्दे मातरम और जयहिंद
कहकर अघाते हैं
अपना सर झण्डे के समक्ष झुकाते हैं
पार्टियाँ हो सकती हैं अनेक
पर देश का झण्डा तो है एक
मत चलिए कुनीति की चाल
किसानों को मत बनाइये अपना ढाल
किसानों को इसमें मत उलझाईए
“जय जवान जय किसान” का नारा लगाइए
किसान कभी नहीं कर सकता
राष्ट्र ध्वज को शर्मसार।
तेरी करनी व अनर्गल बातें सुनकर
सभी रहे हैं धिक्कार।।
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© #कामेश्वर_निरंकुश


शिल्पी कुमारी सुमन

किसान आंदोलन
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आज हर ओर
आंदोलन ही असन्दोलन
पगडंडी से लेकर
मुख्य मार्ग तक
और मुख्य मार्ग से
राज्य पथ तक
केवल सुनाई पड़ती है
शोर – शराबा
हो – हल्ला
नारेबाजी
विभिन्न पार्टियों को
अपना उल्लू सीधा करने के लिए
आजादी प्राप्त करने के लिए
आन्दोलन
आजादी के बाद
आन्दोलन
किसानों को चिंता
रहती है अपनी खेती पर
अपने बैल, हल और ट्रेक्टर पर
वे पानी के लिए
ईश्वर से करते है प्रार्थना
चाहत रहती है इन्हें
पूरी करें प्रभु
उनकी मनोकामना
पर आज सियासी गलियारे से
किसानों के बहाने
आन्दोलन की बात उठाई गई है
किसानों को राजनीति से
कुछ भी नहीं है लेना देना
बेमतलब उन्हें भजाया जा रहा है
उन्हें राजनीति का मोहरा
बनाया जा रहा है।
कल तक जो रहे शांत
आज किसानो के लिए अशांत
किसान को राजनीति में न लावें
किसान कड़ी मिहनत कर
अन्न उपजाते हैं
वे आंदोलन के लिए न सोचते हैं
न आंदोलन में जाते हैं।
आज की गंदी राजनीति में
स्वयं को नहीं लाते हैं।।
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शिल्पी कुमारी सुमन
मीडिया प्रभारी
साहित्य संस्कृति मंच

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