
नई दिल्ली: चुनाव में लोकलुभावन नारों को हथियार बनाकर ही राजनीतिक दल सत्ता हासिल करती है। लेकिन अब सभी को समझ में आने लगा है कि लोकलुभावने नारों के जरिये ही जनता को राजनीतिक दल और राजनीतिज्ञ सत्ता हासिल कर जनता के उम्मीदों पर खरा नहीं उतरती है। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने वोट पाने की खातिर लोक लुभावन वादे करने के लिए राजनीतिक दलों को चेताते हुए कहा कि इससे विकास पर होने वाले खर्च प्रभावित होंगे। नायडू ने बुधवार को बेंगलुरु स्थित पीईएस विश्वविद्यालय के कानून के छात्रों को संबोधित करते हुए देश के नागरिकों से अपने जनप्रतिनिधियों का चयन करते समय सोच-विचार कर निर्णय लेने का भी आह्वान किया। नायडू ने चुनावों की पूर्व संध्या पर मतदाताओं को लुभाने के लिए लोक-लुभावन वादों से देश को होने वाले नुकसान के प्रति राजनीतिक दलों को आगाह करते हुए कहा, श्मतदान करना केवल एक अधिकार ही नहीं है, बल्कि उनका उत्तरदायित्व भी है। इसलिए मतदाता अपने प्रतिनिधियों को चुनते समय 4 सी (करेक्टर अर्थात चरित्र, कंडक्ट अर्थात व्यवहार, कैलिबर अर्थात बुद्धि और कैपेसिटी अर्थात क्षमता) को ध्यान में रखें। उपराष्ट्रपति ने कहा- वोट पाने की खातिर लोकलुभावन वादों से बचें राजनीतिक दल उपराष्ट्रपति ने राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के लिए एक साथ चुनाव कराने पर जोर देते हुए कहा कि चुनाव प्रक्रिया एक समय में ही पूरा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जमीनी स्तर पर लोकतंत्र की मजबूती के लिए राज्यों में किसी कारण से स्थानीय निकायों के चुनावों को स्थगित करने की संभावना नहीं होनी चाहिए। वैकेया नायडू ने इस तरह का आह्वान करके एक बार फिर राजनीतिक दलों और राजनेताओं को कठघरे में खड़ा कर दिया है।
