इसे कहते हैं छप्पड़फाड़ कर मिलना, दीपक प्रकाश को प्रदेश अध्यक्ष के बाद अब राज्यसभा की भी कुर्सी मिली

Jharkhand झारखण्ड राजनीति

रांची से अशोक कुमार
रांची: इसे कहते हैं छप्पड़ फाड़कर मिलना। झारखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश को एक के बाद एक सौगात मिल रही है। दीपक प्रकाश की किस्मत का ताला उस समय खुल गया जब  भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की पूर्ण रूप् से कमान जे.पी. नड्डा ने संभाली। जे .पी. नड्डा की मेहरबानियों का सिलसिला टूटने का नाम ही नहीं ले रहा है। तमाम दावेदारों के बीच नड्डा की ही कृपा बरसी जब दीपक प्रकाश को झारखंड भाजपा केे नये प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कमान मिली।
झारखंड से दीपक प्रकाश राज्यसभा के लिए भाजपा के उम्मीदवार बनाए गए हैं, भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति की नई दिल्ली में हुई बैठक में दीपक प्रकाश को झारखंड से भाजपा का उम्मीदवार बनाने का फैसला किया गया है।  राज्यसभा के लिए झारखंड से खाली हो रही दो सीटों पर वोटिंग हो रही है,  26मार्च को मतदान होगाद्य इसी दिन शाम में नतीजे घोषित किए जाएंगे। झारखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश राज्यसभा चुनाव के लिए भाजपा के उम्मीदवार घेाषित हुए हैं। पिछले महीने 25 फरवरी को दीपक प्रकाश को केंद्रीय नेतृत्व ने झारखंड भाजपा की कमान सौंपी थी। केंद्रीय चुनाव समिति ने बुधवार को राज्यसभा चुनाव के लिए दीपक प्रकाश के नाम पर स्वीकृति दी है। भाजपा के केंद्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की अध्यक्षता में भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक हुई थी जिसमें झारखंड से खाली हो रही दो सीटों में से एक के लिए दीपक प्रकाश के नाम पर मुहर लगी थी लेकिन औपचारिक रूप से घोषणा आज शाम कर दी गयी। दीपक प्रकाश ने करियर की शुरुआत एबीवीपी से की थी। 2000 में जब झारखंड राज्य अलग हुआ तो मुख्यमंत्री बाबूलाल के कार्यकाल में जेएसएमडीसी के चेयरमैन बनाए गए। जब बाबूलाल ने भाजपा छोड़ी और झाविमो बनाया तो दीपक प्रकाश उनके साथ चले गए थे। हालांकि, जल्द वह पुनः भाजपा में वापस आ गए। भाजपा की पिछली कमेटी में दीपक प्रकाश प्रदेश उपाध्यक्ष के पद पर रह चुके। लक्ष्मण गिलुवा के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद महामंत्री बने। प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद दीपक के लिए कमेटी के गठन और अन्य मुद्दों पर अब झारखंड भाजपा के बड़े नेताओं को एक साथ सामंजस्य बनाना एक चुनौती हो सकती है। 9 अप्रैल को राज्यसभा में झारखंड से दो सीटें खाली हो रही हैं। चुनाव में जीत के लिए एक उम्मीदवार को कम से कम 28 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता होगी। बाबूलाल मरांडी के भाजपा में शामिल होने के बाद इस पार्टी की सदस्य संख्या 26 हो गए हैं। आजसू के दो विधायकों को मिला लें तो भाजपा समर्थक विधायकों की संख्या 28 हो जाती है। वैसे भाजपा का दावा है कि दो निर्दलीय विधायक भी उनके संपर्क में हैं।

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