
मुखर संवाद के लिये व्यूरो रिपोर्टः-
धनबाद: झारखंड में कुड़मी जाति की बड़ी आबादी को लुभाने और अपने पक्ष में लेने की हाड़े हमेषा ही रही है और कारण साफ है कि कुड़मी जाति के 17 प्रतिशत मतदाता है। झारखंड में कुड़मी ही ऐसी जाति है जिसे आदिवासियों के बाद सबसे बड़े वोट बैंक के रूप में देखा जाता रहा है। शिबू सोरेन ने भी झारखंड मुक्ति मोर्चा का समीकरण माझाी, महतो और मुस्लिम से ही बनायी थी जिसे आज आदिवासियों के कोर वोअ के रूप में देखा जाता है। झामुमो के बाद के दौर में कुड़मी जाति के लोगों को विश्वास झामुमो से कम हुआ और बाद में शिबू सोरेन से बगावत कर कृष्णा मार्डी के नेतृत्व में झामुमो मार्डी गुट का गठन हुआ था। बाद के दौर में आजसू कुड़मी जाति के वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाता गया। अब फिर से बीजेपी कुड़मी जाति के मतदाताओं को अपने पक्ष मंे लाने के लिये पुरजारे कोशिश कर रहा है। इसीी रणनीति के तहत ही आजसू के साथ अभी गठबंधन हो रहा है। अब धनबाद के सांसद पी.एन. सिंह ने कुछ ऐसा ही बयान दिया है। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सह धनबाद सांसद पीएन सिंह ने कहा कि झामुमो का शीर्ष नेतृत्व कुड़मी से डरता है। झामुमो के शीर्ष नेतृत्व को वास्तव में कुड़मी समाज से प्रेम होता तो राजकिशोर बाबू के अंतिम संस्कार में शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन जरुर शामिल होते। राजकिशोर बाबू के पिता स्वर्गीय बिनोद बिहारी महतो झामुमो के संस्थापक थे। सारा झारखंड जानता है कि शिबू सोरेन स्वयं बिनोद बिहारी महतो के पास जाकर झारखंड आंदोलन को आगे बढ़ाने पर परामर्श लेते थे। उनके पुत्र राजकिशोर बाबू का भी झारखंड आंदोलन में बड़ा योगदान रहा है। निधन के बाद झामुमो के शीर्ष नेतृत्व ने जिस तरह अनदेखी की है, वो वाकई दुखदायी है। यह राजनीतिक संस्कार का पतन है। पीएन सिंह ने शुक्रवार को विशेष बातचीत में कहा कि झारखंड आंदोलन में कुड़मी नेताओं ने सबसे अधिक बलिदान दिया है। निर्मल महतो, शक्ति नाथ महतो, रतिलाल महतो समेत शहीदों की लंबी फेहरिश्त है। जब झारखंड आंदोलन चल रहा था तो झामुमो के घोषणापत्र में लिखा होता था कि आदिवासी और कुड़मी समान है। उनमें कोई फर्क नहीं है। झामुमो के भीतर ऐसी व्यवस्था भी थी। लोकसभा चुनाव के टिकट पर शिबू सोरेन और शैलेंद्र महतो दोनों हस्ताक्षर करते थे। उस वक्त आदिवासी और कुड़मी के अलग होने की बात कोई कहता था तो झामुमो नेतृत्व प्रचार करता था कि झारखंड आंदोलन में फूट डालने के लिए ऐसी बातें कही जा रही है। झारखंड बन गया तो झामुमो नेतृत्व ने दूध की मक्खी की तरह कुड़मी को निकाल बाहर किया है। उन्होंने कहा कि झामुमो नेतृत्व यह भी नहीं चाहता कि संथाल परगना का कोई और नेता मजबूत हो। इसी वजह से वहां के किसी विधायक को दोबारा मंत्री बनाने से परहेज किया जाता रहा है।भाजपा सांसद पीएन सिंह ने कहा कि झारखंड में जब भी झामुमो नीत सरकार बनी है, उसमें मंत्री पद के लिए अलग-अलग कुड़मी चेहरे रहे हैं। स्वर्गीय सुधीर महतो, मथुरा प्रसाद महतो, जय प्रकाश पटेल के बाद जगरनाथ महतो को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। हर चुनाव में झामुमो सीएनटी एवं एसपीटी एक्ट को मजबूत करने का राग अलापता रहा है। मथुरा महतो ने राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री रहते इस कानून को कड़ा किया था। पीएन सिंह ने सवालिया लहजे में कहा, श्उन्हें क्या फायदा हुआ।्य उन्होंने कहा कि झामुमो नेतृत्व को मुद्दा नहीं बल्कि मुद्रा से मतलब है। उनकी हमेशा कोशिश रही है कि कुड़मी नेता आपस में लड़ते रहे। यह भी सच्चाई है कि झारखंड के अधिकतर कुड़मी नेताओं ने मुद्दा की जगह स्वार्थ को तवज्जो दी है। इसलिए झारखंड की सियासत में कमजोर हुए हैं।झामुमो के केंद्रीय महासचिव सह प्रवक्ता विनोद पांडेय ने कहा कि स्वर्गीय बिनोद बिहारी महतो के पुत्र राजकिशोर बाबू पहली बार झामुमो के टिकट पर सांसद बने थे। उस परिवार के प्रति झामुमो के लोगों के मन में जो सम्मान है, उसका आकलन पीएन सिंह जैसे लोग कभी नहीं कर सकते। सीएम हेमंत सोरेन के दिशा निर्देश पर मथुरा प्रसाद महतो ने सारी रात उनके घर पर रहकर अंतिम संस्कार का इंतजाम कराया। सीएम ने राजकीय सम्मान देने की घोषणा की। समझ नहीं आता है कि पीएन सिंह के मन में अचानक कुड़मी प्रेम क्यों जगा है। पीएन को कुड़मी से प्रेम नहीं है। झारखंडी लोगों को आपस में लड़ाने की यह गंदी भाजपाई राजनीति है।हेमंत सरकार बनने के बाद पीएमसीएच का शहीद निर्मल महतो के नाम पर नामकरण किया गया। पीएन सिंह को यह नहीं दिखता है। उन्होंने कहा कि पीएन सिंह को अचानक झारखंड आंदोलन याद आ गया है। झामुमो से जुड़े लोगों ने ही झारखंड आंदोलन में बलिदान दिया है। पीएन को यह भी बताना चाहिए कि अलग झारखंड बनाने के लिए भाजपा के कितने और कौन-कौन लोग शहीद हुए हैं। बगैर शहादत के सबसे अधिक अवधि तक झारखंड में भाजपा ने राज किया है।
