मकर संक्रांति पर कवितायें

साहित्य-संस्कृति


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कामेश्वर-निरंकुश,अध्यक्ष, झाारखंड हिन्दी साहित्य संस्कृति मंच

मकर संक्रांति
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स्नान – दान का पर्व आज
मकर संक्रांति है आया।
सांस्कृतिक उल्लास का
पावन दिन सबको हर्षाया।।

कोरोनाकाल में सभी दिखे
चिन्ता दुःख से परिपूर्ण।
रोग मुक्ति की कामना अब
यह पर्व ही करेगी पूर्ण।।

हर्ष उल्लास, सद्भाव का
अति पावन यह दिन।
हर हिस्से में देश का इसका
संक्रांति का नाम है भिन्न।।

आज गंगा में डुबकी लगा
सभी करते हैं स्नान।
हॄदय से आज ही करते
चूड़ा – तिल का दान ।।

गुड़ – तिल का लड्डू
चूड़ा – गुड़ का लड्डू।
आज मकई ज्वार से
बनता हर घर ने लड्डू।।

उत्तरायण की हवा का
स्वास्थ्य हेतु जरूरी।
गज़क, मुगफली खाकर
तय करते हैं दूरी।।

कहीं संक्रांति कहीं खिचड़ी
कहीं कहते हैं पोंगल।
चूड़ा दही संग गुड़ का स्वाद
भाँति भाँति के व्यंजन।।

भिन्न भिन्न रंगों में कहीं
उड़ते पतंग आज गगन में।
फिरकी और पतंग माझे से
दिख रहे सब मगन में।।

मेघ से चारों दिशाएं में
आसमान बना है सतरंगी।
इंद्रधनुष सा सुंदर दिखता
हर्षित चेहरा है बहुरंगी।
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शिल्पी कुमारी सुमन,मीडिया प्रभारी, झारखंड हिन्दी साहित्य संस्कृति मंच

संक्रांति त्यौहार
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आया लोहड़ी का त्यौहार ,
जग में छाई मस्त बहार l
गुड़ रेवड़ी की घुली मिठास ,
तन मन में उमगा उल्लास ।

आज गगन में उड़ रहा
हर दिशाओं में पतंग।
मानो कोरोना भगाने की
छिड़ चुकी है जंग।।

जा उड़ जा तू नील गगन में
ले जा ये संदेश।
कोरोना से मुक्त ही जाए
मेरा भारत देश।।

डोर आरएम की बांधी हमने
जोश न माझा सादा।
लिखा ये संदेश पतंग पर
दूर हो सारी बाधा।।

रंग बिरंगी धरती हो जाये
और जीवन बगिया फूले।
दूर हो सारे दुःख दर्द
सुख हर आंगन झूले।।

मिटे रोग का दर्द हर दिल से
महके यह परिवेश।
लोहड़ी संक्रांति का पर्व यह
हर्ष से मना रहा यह देश।।
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शिल्पी कुमारी सुमन

मकर संक्राति पर मस्ती
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आसमान में उड़ी पतंग,
बादल से जा जुड़ी पतंग।
छोटी-मोटी, बड़ी पतंग,
हीरे जैसी बड़ी पतंग।

पीले, नीले, लाल, गुलाबी,
कितने रंग में रंगी पतंग।
नीचे-ऊपर, ऊपर-नीचे,
लहरा-लहरा, जमी पतंग।

जितनी ढील उसे दी हमने,
उतनी सिर पर चढ़ी पतंग।
कोई खेंचे, कोई लपेटे,
पेंच लड़ाने जुटी पतंग।

आकर जो उससे टकराई,
हवा-हवा में लड़ी पतंग
बच्चों के दिल को बहलाती,
कभी डोर से कटी पतंग।

हम सबके भी मन को भाती,
सात रंगों में रंगी पतंग।
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अशोक शास्त्री ‘अनंत’

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