
मुखर संवाद के लिये अशोक कुमार की रिपोर्टः-
रांची: झारखंड के राजभवन में निर्वाचन आयोग की ओर से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता को लेकर भेजी गयी रिपोर्ट पहुंचते ही राज्य में राजनीतिक भूचाल आ गया है।
लाभ के पद के मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर चुनाव आयोग ने अपनी राय गुरुवार को राजभवन भेज दी। अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक हेमंत की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की अनुशंसा चुनाव आयोग ने की है, लेकिन इसकी अधिकारिक पुष्टि अभी तक नहीं की गई है। राज्यपाल रमेश बैस हेमंत की विधानसभा सदस्यता पर फैसला सुनाएंगे। सूत्रों के मुताबिक वह राजभवन में कानून विशेषज्ञों को बुलाया है। आयोग के पत्र पर सलाह लेंगे। सीएम हेमंत सोरेन ने ट्वीट करके कहा- संवैधानिक संस्थानों को तो खरीद लोगे, जनसमर्थन कैसे खरीद पाओगे। हैं तैयार हम! जय झारखंड। इसके पहले निर्वाचन आयोग के पत्र पर सोरेन ने कहा कि ऐसा लगता है कि भाजपा नेता, सांसद और उनके कठपुतली जर्नलिस्टों ने रिपोर्ट तैयार की है। नहीं तो ये सील्ड होती। संवैधानिक संस्थाओं और एजेंसियों को भाजपा दफ्तर ने टेकओवर कर लिया है। भारतीय लोकतंत्र में ऐसा कभी नहीं देखा गया।
राज्यपाल दिल्ली से कल दोपहर करीब दो बजे रांची पहुंच गए हैं। उन्होंने कहा कि राजभवन पहुंचकर मामले को देखेंगे। फिलहाल इसे लेकर राजभवन में अफसरों की मीटिंग हुई है। इधर, महागठबंधन में शामिल पार्टियों ने आगे की तैयारी कर ली है।
जेएमएम ने अपनी बात रखी है। राज्य में अगले 48 घंटे में राजनीतिक उथल-पुथल होने का अंदाजा लगाया जा रहा है। चुनाव आयोग के इस फैसले का असर राज्य सरकार पर पड़ना तय माना जा रहा है। सत्ताधारी दल सभी विकल्पों पर विचार कर उस आधार पर स्ट्रैटजी बना रही है। झामुमो में हेमंत के साथ और हेमंत के नहीं रहने की स्थितियों को लेकर तैयारी की जा रही है। अगर हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द होती है तो उन्हें इस्तीफा देकर फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी होगी। इसके बाद 6 महीने के अंदर उन्हें दोबारा विधानसभा चुनाव जीतना होगा। अगर चुनाव लड़ने के लिए उन्हें अयोग्य घोषित किया जाता है तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना होगा। ऐसे में वे परिवार या पार्टी से किसी को कमान सौंप सकते हैं। चुनाव आयोग अगर किसी विधायक या मंत्री को लाभ का पद रखने के मामले में दोषी पाता है तो उनकी सदस्यता समाप्त कर सकता है। उन्होंने बताया कि सदस्यता रद्द होने पर वे इस मामले में हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं। आर्टिकल-32 के मामले में सीधे सुप्रीम कोर्ट में भी अपील कर सकते हैं, लेकिन ये सभी विकल्प चुनाव आयोग का फैसला आने के बाद ही निर्भर करता है। चुनाव आयोग के फैसले के दोनों पक्षों को लेकर अर्ल्ट मोड में हैं। अगर फैसले से सोरेन की राजनीतिक सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा तो सत्तापक्ष कम्फर्टेबल मोड में रहेगा। दूसरी तरफ झामुमो इस बात को लेकर बेचौन है कि अगर कमीशन का फैसला सोरेन के खिलाफ गया तो ऐसी स्थिति में उनके विकल्प के रूप में किसे चुना जा सकता है। हालांकि, इसको लेकर पार्टी और महागठबंधन प्लेटफार्म पर अनौपचारिक रूप से तीन नामों की चर्चा हुई है। उसमें सबसे पहला नाम सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन का है। दूसरे और तीसरे नंबर पर जोबा मांझी और चम्पई सोरेन हैं। दोनों सोरेन परिवार के काफी करीबी और विश्वस्त हैं। कांग्रेस ने भी इन नामों पर अभी तक नहीं किसी तरह की आपत्ति नहीं जताई है।
