मुखर संवाद के लिये शिल्पी यादव की रिपोर्टः-
रांची : सरला बिरला विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय एवं भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा भारतीय भाषाओं में अनुवाद अध्ययन तथा भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन दीप प्रज्वलन एवं कुल गीत के साथ किया गया। इस अवसर पर अतिथि स्वागत एवं परिचय के पश्चात गणेश नृत्यांजलि के पश्चात कार्यक्रम के संयोजक एवं मानविकी एवं भाषा शास्त्र की संकायाध्यक्ष डॉ नीलिमा पाठक ने संगोष्ठी परिचय सह विषय प्रवेश कराया। बतौर मुख्य अतिथि रामकृष्ण मिशन आश्रम, रांची के सचिव स्वामी भावेशानंद जी ने भारतीय भाषाओं में अनुवाद अध्ययन तथा भारतीय ज्ञान परंपरा की विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि भारतीय पुनर्जागरण विवेकानंद का मिशन था। भारत का पुनर्जागरण केवल भारतीय शिक्षा द्वारा ही संभव है। संस्कृत भाषा आम लोगों के लिए नहीं है, इस धारणा से बाहर निकल कर सभी को इसे सीखना, समझना तथा पढ़ने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत आध्यात्मिक ज्ञान की पेटी है। विश्व के सभी ज्ञान का मूल भारत ही है। विश्व के सभी भाषाओं का मूल संस्कृत है। उन्होंने कहा कि जब भारत जागेगा तो विश्व अवश्य जगेगा। पारंपरिक ज्ञान के साथ-साथ आधुनिक ज्ञान का समन्वय होना आज की शिक्षा की आवश्यकता है। प्राकृतिक कृषि की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हजारों साल पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों ने इसकी कल्पना की थी जिसकी आज वैज्ञानिक स्तर पर चर्चा हो रही है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को छोड़कर सांस्कृतिक मौत को आमंत्रित करना है।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के बीज वक्ता के रूप में रांची विश्वविद्यालय रांची, हिंदी विभाग के पूर्व प्राध्यापक प्रोफेसर अशोक प्रियदर्शी ने कहा कि भाषा को सीखने की ललक होनी चाहिए। अनुवाद कभी भी मूल भाव को सही-सही प्रदर्शित नहीं कर सकता। अनुवाद सीधा तथा सरल होना चाहिए। अनुवाद की जगह मूल भाषा को पाठ्यक्रम में तैयार किया जाए। भाषा सीखना मानसिक धारना पर निर्भर करता है राष्ट्रीय शिक्षा नीति बेहतर शिक्षा के साथ-साथ परिभाषा की वकालत करती है। इसके सफल क्रियान्वयन के लिए सभी को सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
बतौर विशिष्ट अतिथि कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर गंगाधर पंडा ने संस्कृत भाषा की महत्व, उपयोगिता के साथ-साथ वसुधैव कुटुंबकम की चर्चा की। उन्होंने कहा कि आज के समय में अनुवाद की आवश्यकता जरूर है लेकिन अनुवादक कभी भी मूल भाव के साथ न्याय नहीं कर पाता है। उन्होंने पाणिनी ग्रामर की चर्चा करते हुए कहा कि अमेरिका ने संस्कृत के महत्व को सबसे पहले जाना तथा अब संपूर्ण विश्व संस्कृत को न केवल अपनाना चाहती है बल्कि इसके अनुसार जीवन जीने के लिए भी प्रयासरत हैं।
बतौर विशिष्ट अतिथि संस्कृत भारती के अखिल भारतीय शिक्षण प्रमुख डॉ एचआर विश्वास ने कहा कि आजादी के पश्चात हमारे चिन्तकों की सोच थी कि हमारी पूरी व्यवस्था पूर्ण स्वाधीन हो, लेकिन वर्षो बीत जाने के बाद भी थोपी हुई व्यवस्था का हमने अनुसरण करने के लिए बाध्य रहे। लेकिन अन्यान देश भक्तों ने के प्रयास रहा कि हमारी व्यवस्था का परिष्कार हो तत्पश्चात नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की आगाज की गई जिसके सफल क्रियान्वयन के पश्चात भारत अध्यात्म के साथ-साथ ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में ना केवल आगे बढ़ेगा बल्कि विश्व के नेतृत्व करने में भी कामयाब हो सकेगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सरला बिरला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर गोपाल पाठक ने आयोजन समिति के कार्यों की प्रशंसा करते हुए भारतीय भाषाओं में अनुवाद अध्ययन तथा भारतीय ज्ञान परंपरा की आवश्यकता पर बल दिया।
सरला बिरला विश्वविद्यालय के मुख्य कार्यकारी पदाधिकारी डॉ प्रदीप कुमार वर्मा ने महत्वपूर्ण विषय पर संगोष्ठी आयोजित किए जाने पर आयोजन समिति को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल किताबी ज्ञान देना नहीं, भारतीय ज्ञान परंपरा को जीवन में आत्मसात कराना है। इस अवसर पर संस्कृत भारती के अखिल भारतीय सह शिक्षण प्रमुख डॉक सचिन कठाले, संस्कृत भारती के बिहार झारखंड के क्षेत्र प्रमुख श्री प्रकाश पाण्डेय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के संस्कृत के सहायक प्राध्यापक डॉ धनंजय वासुदेव द्विवेदी, राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, विनोबा भावे विश्वविद्यालय के डॉ शैलेश मिश्रा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। उद्घाटन सत्र के दिन दो तकनीकी सत्र का भी आयोजन किया गया जिसमें झारखंड के विभिन्न जिलों से पधारे संस्कृत शिक्षकों ने सहभागिता की। कार्यक्रम का संचालन डॉ नीतू सिंघी जी ने किया तथा अंत में धन्यवाद ज्ञापन की औपचारिकता डॉ राधा माधव झा झा द्वारा पूरी की गई।
इस अवसर पर कार्यक्रम संयोजक डॉ नीलिमा पाठक, डॉ संदीप कुमार, प्रो श्रीधर बी दांडीन, डॉ अशोक कुमार अस्थाना, डॉ सुबानी बाड़ा, हरी बाबू शुक्ला, अजय कुमार, प्रवीण कुमार, आशुतोष द्विवेदी, प्रो अमित गुप्ता, डॉ संजीव कुमार सिन्हा, डॉ मनोज कुमार पांडे, डॉ रिया मुखर्जी, डॉ पूजा मिश्रा, प्रो आदित्य विक्रम वर्मा, डॉ भारद्वाज शुक्ला, डॉ विद्या झा, डॉ राशि मालपानी, डॉ नम्रता चौहान, संजीव श्रीवास्तव, प्रो अनुषा लाल, पृथ्वीराज सिंह, चंद्र माधव सिंह, डॉ मनोरमा, डॉ मुकेश सिंह, डॉ प्रियंका पांडे, डॉ अतुल कर्ण, किश्लय, श्रेया भारती, सुभाष नारायण, चंद्रशेखर महथा,राहुल रंजन, उमंग, आशीष आदि उपस्थित थे।
