मुखर संवाद के लिये शिल्पी यादव की रिपोर्टः-
रांची : स्कूली शिक्षा एवं मद्य निषेध उत्पाद मंत्री जगरनाथ महतो का पार्थिव शव थोड़ी देर में ही रांची एयरपोर्ट पहुंच रहा है। जहां से उनको झारखंड विधानसभा में अंतिम दर्शन के लिये रखा जायेगा। झारखंड विधानसभा में विधानसभाध्यक्ष रवीन्द्रनाथ महतो और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और विघानसभा में अंतिम श्रद्धांजलि देंगें। उसके बाद उनके पार्थिव शरीर को हरमू के झामुमो कार्यालय लाया जायेगा जहां अध्यक्ष शिबे सोरेन और उनके पार्टी के कार्यकर्ता और विधायक श्रद्धांजलि देंगे।
झारखंड के स्कूली शिक्षा एवं मद्य निषेध उत्पाद मंत्री जगरनाथ महतो का बृहस्पतिवार को चेन्नई एक अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया. उनका अंतिम संस्कार आज बोकारो में राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा. अधिकारियों ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि महतो के निधन पर राज्य सरकार ने झारखंड में दो दिनों के राजकीय शोक की घोषणा की है. महतो झारखंड के डुमरी विधानसभा क्षेत्र तीन बार लगातार विधायक रहने के बाद चौथी बार के अपने कार्यकाल में स्कूली शिक्षा मंत्री एवं मद्य निषेध उत्पाद मंत्री बने थे. जगरनाथ महतो का जन्म 31 जुलाई 1967 को हुआ था वह झारखंड में बोकारो जिले के बेरमो अनुमंडल के अलार्गो पंचायत अंतर्गत सिमराकुली गांव के निवासी थे। नवंबर 2020 में कोविड की चपेट में आने के बाद उनके फेफड़े का प्रत्यारोपण हुआ था. आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि शुक्रवार सुबह आठ बजे महतो का पार्थिव शरीर रांची विधान सभा लाया जाएगा. मंत्री का पार्थीव शरीर दो बजे झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी कार्यालय, रांची लाया जाएगा, जिसके बाद उसे पैतृक गांव सिमराकुली अलार्गो जे जाया जाएगा और भंडरीदह स्थित दामोदर नदी में उनका अंतिम संस्कार पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।
विधानसभाध्यक्ष रवीन्द्रनाथ महतो के अनुसार, बेहद ही सरल स्व्भाव के जगन्नथ महतो झारखंड आंदोलन में अग्रणी भूमिका में रहें और उनको झारखंड में 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति के जिलये हमेशा ही याद रखा जायेगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने महतो के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा, ’आज सुबह राजनीतिक योद्धा और संघर्ष के प्रतीक जगरनाथ दा के निधन की खबर सुनकर निः शब्द और मर्माहत हूं.’ उन्होंने कहा, ’जगरनाथ दा इस सरकार में मंत्री के साथ साथ मेरे बड़े भाई और एक ऐसे अभिभावक की भूमिका में थे जो गलतियां होने पर डांट भी लगा देते थे और कभी पीठ भी थपथपा देते थे.’।
