बिहार में मस्तिष्क बुखार का कहर जारी,अब तक 67 बच्चों की मौत

Jharkhand झारखण्ड


पटना: सुशासन बाबू भले ही बेहतर स्वास्थ्य सेवाओ का हवाला देते नहीं थकते हो लेकिन बिहार के बच्चों की हो रह लागातार मौत के कारण उनके दावों की पोल ख्ुालती जा रही है। बिहार में मस्तिष्क ज्वर (एईएस) का कहर जारी है। शनिवार को एसकेएमसीएच में भर्ती चार और बच्चों की मौत हो गई। यहां भर्ती 6 बच्चों की हालत गंभीर है। वहीं, केजरीवाल अस्पताल में भर्ती 6 बच्चे की स्थिति भी गंभीर है।
एसकेएमसीएच और केजरीवाल अस्पताल में पिछले 10 दिनों में अब तक एईएस के शिकार 67 बच्चों की मौत हो चुकी है। शुक्रवार रात से शनिवार सुबह तक चार बच्चों ने एसकेएमसीएच में दम तोड़ दिया। यहां अभी 80 बच्चों का इलाज चल रहा है। इसी तरह केजरीवाल अस्पताल में 25 बच्चों का इलाज चल रहा है। दोनों अस्पतालों में अब तक 288 बच्चे भर्ती हुए हैं। एईएस बीमारी क्यों होती है, यह एक रहस्य है। हर साल गर्मियों के दिनों में मुजफ्फरपुर और आसपास के जिलों में बच्चे इस बीमारी के शिकार होते हैं। इस बीमारी पर रिसर्च चल रहा है। इसके किसी एक कारण पर डॉक्टरों की टीम नहीं पहुंच पाई है। डब्लूएचओ ने इसे लक्षण के आधार पर एईएस का नाम दिया है। डॉक्टर लक्षण के आधार पर इसका इलाज करते हैं। सकेएमसीएच के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. गोपाल शंकर साहनी ने बताया कि शोध में यह बात सामने आई थी कि जब गर्मी 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक और नमी 70 से 80 प्रतिशत के बीच होती है तो इस बीमारी का कहर बढ़ जाता है। बीमारी में बच्चे को तेज बुखार के साथ झटके आते हैं। हाथ-पैर में ऐंठन होती है, वह देखते-देखते बेहोश हो जाता है। स्वास्थ्य विभाग ने इस बीमारी को लेकर एक जारी गाइड जारी की है। इसके अनुसार, रात को खाली पेट सोने वाले बच्चे इसका अधिक शिकार होते हैं। बच्चे को जल्द से जल्द हॉस्पिटल पहुंचाना जरूरी है। डॉक्टर के अनुसार एईएस का लक्षण दिखें तो बच्चे को तुरंत हॉस्पिटल ले जाना चाहिए। लक्षण उभरने के दो घंटे के भीतर इलाज मिलने से बच्चे की जान बचने की संभावना अधिक होती है। इसे देखते हुए एईएस प्रभावित जिलों के पीडीएस दुकानों पर गाड़ियों का प्रबंध किया गया है, जिससे बीमार बच्चे को तेजी से हॉस्पिटल पहुंचाया जा सके।
इस बीमारी में मस्तिष्क में सूजन हो जाती है। यह उन जगहों पर पाई जाती है जहां लीची के बगान अधिक हैं। 1-15 साल के बच्चे इसके अधिक शिकार होते हैं। बीमारी का लक्षण तेज बुखार, शरीर में चमकी, दांत बैठना, शरीर में ऐंठन और सुस्त और बेहोश होना है। सुबह तीन बजे से इसके लक्षण दिखने लगते हैं। खून में शुगर की मात्रा एकाएक कम हो जाती है।
लीची के बीज और फल में ऐसा रसायन होता है जो ब्लड शुगर के स्तर को अचानक कम कर देता है। यह रसायन पूरे पके लीची के फल में कम मात्रा में होता है। अधिक मात्रा में लीची खाने बाले बच्चे इसका शिकार हो सकते हैं। लीची खाने के बाद बिना भरपेट भोजन किए रात में सोने वाले बच्चे बीमारी के अधिक शिकार होते हैं। गर्मी के दिनों में बिना खाना पानी की परवाह किए धूप में खेलने वाले बच्चे भी इसके शिकार होते हैं। बिहार के नौनिहालो को इस बिमारी के कारण काफी बच्चों के मोत के आगोश में समां जाने की संभावना से लोग डरे हुए हैं।

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