
रांची से अशोक कुमार की रिपोर्टः-
रांची: भाजपा के विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के उपर दलबदल कानून के तहत उनकी सदस्यता जा सकती है। इस बात में संशय बरकारार रहने के कारण ही विधानसभाध्यक्ष रवीन्द्रनाथ महतो की ओर से भाजपा के विधायक और पूर्व मंत्री सी.पी. सिंह को बैठक में बुलाया गया है। सी.पी. सिंह को इस कारण भी बुलाया गया है कि सी.पी. सिंह भाजपा के वरिष्ठ विधायक हैं और बाबूलाल मरांडी के नेता चुने जाने से पहले सी.पी. सिंह ने ही दो दिवसीय सत्र के दौरान भाजपा की ओर से मोर्चा संभाला था। सबसे बड़े विपक्षी दल यानी भाजपा ने भले ही बाबूलाल मरांडी को विधायक दल का नेता चुन लिया है, मगर अब तक पार्टी के इस निर्णय या फिर मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के विभाजन और अलग-अलग दलों में विलय पर स्पीकर रवींद्रनाथ महतो ने कोई भी निर्णय नहीं लिया है। विधानसभाध्यक्ष रवीन्द्र नाथ महतो के अनुसार, वे इस मामले में कानूनी सलाह लेंगें और हड़बड़ी में कोई निर्णय नहीं लेंगे। उनके इस कथन की पुष्टि करते हुए ही बजट सत्र को लेकर 27 फरवरी को विभिन्न पार्टियों के विधायक दल नेताओं की बैठक के लिए भाजपा से बाबूलाल मरांडी को नहीं, सीपी सिंह को आमंत्रण दिया गया है। यानी विधानसभा में अभी बाबूलाल मरांडी को बतौर भाजपा के विधायक दल के नेता, मान्यता नहीं मिली है। प्रदीप यादव को बतौर झाविमो विधायक दल नेता न्यौता दिया गया है।अर्थात् विधानसभाध्यक्ष ने झाविमो के विभाजन और विलय को अभी तक स्वीकृति नहीं दी है। झाविमो के तीन विधायकों के बीच पार्टी के विभाजन और दोनों धड़ों के अलग-अलग मर्जर को लेकर दो सवाल राजनीतिक गलियारों में उठते रहे हैं। बाबूलाल मरांडी ने प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को अलग-अलग तारीखों पर पार्टी से निष्कासित किया। 11 फरवरी को पार्टी की केंद्रीय कार्यसमिति की बैठक में भाजपा मे विलय का निर्णय लिया। मरांडी के समर्थकों के मुताबिक उस समय मरांडी ही पार्टी के अकेले विधायक थे, अत: निर्णय बहुमत का था। संविधान विशेषज्ञ जीसी मल्होत्रा के अनुसार , निष्कासन के बावजूद दोनों ही झाविमो के ही विधायक कहे जाएंगे। इसलिए तीन विधायकों वाली पार्टी में वे अगर एक साथ हो गए तो वह दो तिहाई विधायक कहे जाएंगे। विधायकों का विभाजन ही मूल है। इससे अलग पार्टी की कमेटी के फैसले से विधानसभा को मतलब नहीं है। बाबूलाल ने 13 फरवरी को निर्वाचन आयोग व 16 फरवरी को स्पीकर को भाजपा में विलय के निर्णय की जानकारी दी। 17 को घोषणा की और 24 फरवरी को भाजपा ने स्पीकर को विलय व बाबूलाल को विधायक दल का नेता चुने जाने संबंधी पत्र सौंपा। जबकि प्रदीप-बंधु ने 16 फरवरी को कांग्रेस में विलय की घोषणा की और 17 को दोनों विधायकों व कांग्रेस ने स्पीकर को जानकारी दी। जीसी मल्होत्रा कहते हैं कि यदि स्पीकर को जानकारी देने के बजाय दोनों पक्षों द्वारा प्रक्रिया पूरी करने को विलय की तिथि माना गया तो दो विधायकों वाले धड़े यानी दो-तिहाई विधायकों का मर्जर पहले होगा। तब दल-बदल कानून लागू नहीं होगा। बचे हुए विधायक का बाद में भाजपा में मर्जर भी मान्य होगा। झाविमो के दोनों गुटों ने अगर एक ही दिन या एक साथ विलय का निर्णय लिया है तो वह सही है। ऐसे में एक गुट के दो तिहाई विधायकों ने कांग्रेस में विलय किया। जीसी मल्होत्रा के अनुसार , इस विधानसभा के दौरान झारखंड विकास मोर्चा के तहत ही तीेनों विधायकों की संख्या गिनी जायेगी। इस कारण दो तिहाई बहुमत से ही दलबदल या विलय के प्रस्ताव को स्वीकृति मिल सकती है। संविधान विशेषज्ञों की राय के अनुसार, यदि विधानसभाध्यक्ष ने बाबूलाल मरांडी के विलय को लेकर कानूनी राय ली तो निश्चित रूप से बाबूलाल मरांडी की सदस्यता समाप्त हो सकती है। जिस तरह से राज्यसभा सांसद के रूप में दलबदल करने के बाद शरद यादव सरीखे नेता की तीन महीने के अंदर ही सदस्यता समाप्त हो गयी थी उसी तरह से बाबूलाल मरांडी की सदस्यता समाप्त हो सकती है।
